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९२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं तथा रामवन संग्रहालय, सतना में हैं ।२०५ एलोरा में मल्लिनाथ की मूर्ति नहीं है। २०. मुनिसुव्रतः
बीसवें तीर्थंकर 'मुनिसुव्रत' का जन्म राजगृह नगर के हरिवंशी काश्यपगोत्री राजा सुमित्र के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम सोमा था। इन्द्रों ने अन्य तीर्थंकरों की भाँति इनका भी सुमेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीरसागर के जल से अभिषेक किया और 'मुनिसुव्रत' नाम रखा ।२०६ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार गर्भकाल में इनकी माता सम्यक् रीति से मुनि की तरह व्रत का पालन करती रहीं अतः महाराज सुमित्र ने इनका नाम 'मुनिसुव्रत' रखा ।२०° उत्तरपुराण के ६७वें पर्व में आठवें बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण के रूप में रामकथा के तीनों प्रमुख चरितों राम, लक्ष्मण और रावण का भी उल्लेख हुआ है जो मुनिसुव्रत के समकालीन थे। इनकी आयु तीस हजार वर्ष, शरीर बीस धनुष ऊँचा और कान्ति मयर के कण्ठ के समान नीली थी। आयु के पन्द्रह हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर एक दिन उनके भागहस्ती ने अपने पूर्वभव का स्मरण कर जब खाना-पीना छोड़ दिया तभी इन्हें भी नश्वर संसार के प्रति विरक्ति हो गयी और इन्होंने दीक्षा धारण कर लिया। तपश्चरण करते हुए छद्मस्थ अवस्था में ग्यारह माह व्यतीत हो जाने पर चम्पक वृक्ष के नीचे वैशाख कृष्ण नवमी के दिन श्रवण नक्षत्र में इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। चिरकाल तक आर्यक्षेत्र में धर्म का उपदेश देते हुए जब उनकी आय का एक माह शेष रह गया तब सम्मेदशिखर पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण कर इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया ।२०८
जैनकला में मुनिसुव्रत की मूर्तियाँ ९वीं शती ई० से ही मिलने लगती हैं, इनका लांछन कूर्म और यक्ष-यक्षी वरुण एवं नरदत्ता (या बहुरूपिणी) हैं । विमलवसही, कुम्भारिया, बजरामठ (ग्यारसपुर, म०प्र०), आगरा, खजुराहो, बारभुजी गुफा एवं राजगिर में मुनिसुव्रत की कई मूर्तियाँ मिली हैं (चित्र ७)। दिगम्बर स्थलों की मूर्तियों में मुनिसुव्रत की बहुरूपिणी यक्षी को शय्या पर लेटे दिखाया गया है जबकि आगरा से मिली और राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सुरक्षित 'मुनिसुव्रत' लेख से युक्त मूर्ति के परिकर में जीवन्त स्वामी महावीर एवं बलराम और कृष्ण की आकृतियों के अतिरिक्त यक्ष-यक्षी के रूप में कुबेर और अम्बिका का
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