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शलाका पुरुष : १२१ हुआ था। ये पद्म आदि समस्त लक्षणों से युक्त थे। इन्होंने पराक्रम से चक्रवर्ती पद प्राप्त कर चिरकाल तक दस प्रकार के भोगों का उपभोग किया। एक दिन आकाश में सुन्दर बादल को देख वह अत्यन्त हर्षित हुए, किन्तु सहसा उसको नष्ट होता देख उन्हें इस नश्वर संसार के प्रति विरक्ति हो गयी और उन्होंने अपने पुत्र को राज्य सौंप कर समाधिगुप्त नामक जिनराज के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान तथा मोक्ष प्राप्त किया ।२८ (१०) हरिषेण चक्रवर्ती :
दसवें चक्रवर्ती हरिषेण का जन्म मुनि सुव्रतनाथ के तीर्थ में भोगपुर नामक नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्मनाभ के यहाँ हुआ था। इनके पिता ने राजसीवृत्ति छोड़ कर संयम धारण कर लिया था। जिस दिन उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ उसी दिन राजा हरिषेण की आयुधशाला में चक्र, छत्र, खड्ग और दण्ड ये चार रत्न प्रकट हुए। तत्पश्चात् श्रीगह में काकिणी, चर्म और मणि ये तीन रत्न प्रकट हुए। चक्ररत्न की पूजा कर जब वह दिग्विजय के लिये प्रस्थान करने को हुए उसी समय पुरोहित, गृहपति, स्थपति और सेनापति ये चार रत्न प्रकट हुए तथा विद्याधर विजयार्ध पर्वत से गज, अश्व और कन्या रत्न लेकर आये। इसी प्रकार गणबद्ध नामक देव उनके लिये नदी मुखों से नौ निधियाँ ले आये । इस प्रकार छह प्रकार की सेनाओं के साथ दिग्विजय को प्रस्थान कर, देव, मनुष्य तथा विद्याधर राजाओं द्वारा सेवित हो चिरकाल तक इन्होंने दस प्रकार के भोगों का उपभोग किया। एक दिन जब वह अपनी महल की छत पर बैठे हुए थे उसी समय चन्द्रग्रहण देखकर इन्हें विरक्ति हो गयी और अपने पुत्र को राज्यभार सौंपकर श्रीनाग नामक मुनिराज के पास जाकर संयम धारण कर लिया। अनेक प्रकार की ऋद्धियों को प्राप्त कर ये सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुए।२९ (११) जयसेन चक्रवर्ती :
जयसेन ग्यारहवें चक्रवर्ती थे। इनका जन्म २१वें तीर्थंकर 'नमिनाथ' के तीर्थ में कौशाम्बी नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा 'विजय' के यहाँ हुआ था इनकी माता का नाम प्रभाकरी था। जयसेन चक्रवर्ती सर्वलक्षणों से युक्त, सुवर्ण के समान कान्ति वाले व चौदह रत्नों और . निधियों के स्वामी थे।
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