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तीर्थकर (या जिन) : १०९. निष्कषाय
निष्पाय या अपाय निष्पुलाक
निष्कषाय निर्मम
विपुल चित्रगुप्त
निर्मल समाधि
चित्रगुप्त समवर
समाधिगुप्त यशोधर या अनिवृत्ति स्वयम्बर या स्वयंभू विजय
अनिवर्ती २१. मल या विमल
जयनाथ या विजय देव या देपोपपात
विमल २३. अनन्तवीर्य
देवपाल २४. भद्र
अनन्तवीर्य दोनों ही परम्पराओं में राजा श्रेणिक को भावी प्रथम तीर्थंकर माना गया है। पूर्व, वर्तमान तथा भविष्य के पश्चात्कालीन ७२ तीर्थंकरों की उपासना जैन मन्दिरों में भी प्रचलित रही है जिसके मूर्त उदाहरण कुम्भारिया, देलवाड़ा, खजुराहो एवं देवगढ़ जैसे स्थलों पर देखे जा सकते हैं।
सन्दर्भ
१. समवायांगसूत्र १८; पउमचरिय १.१-२; ३८-४२ । २. मारुतिनन्दन तिवारी, जैन प्रतिमाविज्ञान, पृ० ३० । ३. हस्तीमल, जैनधर्म का मौलिक इतिहास, खण्ड-१, जयपुर १९७१, भूमिका
से उद्धृत, पृ० ४६-४७ । ४. मारुतिनन्दन तिवारी, पू० नि०, पृ० ३० । ५. स्थानांग ४.३ । ६. हस्तीमल, पू० नि०, भूमिका, पृ० ४४ । ७. वहीं, पृ० ४८। ८. अठ्ठसहस्सलक्खणघरो"..""उत्तराध्ययन २२.५ । ९. हस्तीमल, पू० नि०, अपनी बात से उद्धृत, पृ० १० । १०. वहीं, पृ० ११ । ११. तिलोयपण्णत्ति ४.९३४-३६, ९३७-३९ । १२. कल्पसूत्र २.१८४-२०३; समवायांगसूत्र १५७-१५८; भगवतीसत्र २०.८..
५८-५९, १६, ५; पउमचरिय १.१-७, ५.१४५-१४८ ।
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