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९० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
दिन तिलक वृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ला तृतीया के दिन उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । अनेक देशों में धर्मोपदेश हेतु विहार करते हुए जब आयु का एक माह शेष रह गया तब सम्मेदशिखर पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर वैशाख शुक्ला प्रतिपदा के दिन कृतिका नक्षत्र में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया ।१९५ लगभग ११वीं शती ई० से कुन्थुनाथ की मूर्तियों के कुछ उदाहरण मिले हैं जो अलुअर (बिहार), बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं, राजपूताना संग्रहालय, अजमेर व विमलवसही में देखे जा सकते हैं। कुन्थु का लांछन छाग ( या बकरा) और यक्ष-यक्षी गन्धर्व एवं बला ( या अच्युता या जया) हैं । १९६ एलोरा में कुन्थुनाथ की मूर्ति नहीं है। १८. अरनाथ :
अठारहवें तीर्थंकर अरनाथ चक्रवर्ती भी थे जिनका जन्म हस्तिनापुर के सोमवंशी काश्यपगोत्री राजा सुदर्शन के यहाँ हुआ था। इनकी माता मित्रसेना ने भी सोलह शुभस्वप्न देखे तथा देवों द्वारा गर्भकल्याणक उत्सव के बाद मृगशिर शुक्ल चतुर्दशी के दिन पुष्य नक्षत्र में तीन ज्ञानों से सुशोभित उत्तम पुत्रको जन्म दिया। उनके जन्म कल्याणक में विभिन्न उत्तमदेव अपने देवियों के साथ सम्मिलित हुए।१९७
अरनाथ तीर्थंकर की आयु चौरासी हजार वर्ष तथा शरीर तीस धनुष ऊँचा था। कुमारकाल के इक्कीस हजार वर्ष तथा इतना ही और समय बीत जाने पर इन्हें राज्य व चक्रवर्ती पद प्राप्त हुआ। एक दिन शरद ऋतु के मेघों को अकस्मात् विलय होता देख कर इन्हें इस संसार के प्रति विरक्ति उत्पन्न हो गयी और तभी अपने अरविन्द कुमार नामक पूत्र को राज्य देकर अरनाथ सहेतुक वन में चले गये और वहाँ एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हो गये ।।१९८ छद्मस्थ अवस्था में सोलह वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद कार्तिक शुक्ला द्वादशी के दिन रेवती नक्षत्र में आम्रवृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
विभिन्न देशों में धर्म का उपदेश देने के लिये विहार करते हए जब उनकी आयु का एक माह शेष रह गया तब सम्मेदशिखर पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन रेवती नक्षत्र में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। चक्रवर्ती होने के कारण अरनाथ को भी चौदह रत्नों व नौ निधियों का अधिपति माना. गया है ।१९९
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