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१०२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन करते सर्पफणों एवं कुण्डलियों के प्रतीक रूप में ही दिखाया गया है । शम्बर को विभिन्न उपसर्गों के प्रसंग में महिष, सिंह और हवा में तैरते हुए. असुर तथा शुल, शलिका, त्रिशुल, दण्ड, वज्र, सर्प और पर्वतखण्डों से पार्श्वनाथ के ऊपर भीषण आक्रमण करते हुए आकारित किया गया है (चित्र १३, १४, १५, १६ )। शम्बर की उग्रता और पार्श्वनाथ का शांतभाव से अविचलित रूप में तपस्यारत बने रहना इन दो अलगअलग स्थितियों को एलोरा के शिल्पियों ने बड़ी कुशलता के साथ मूर्तियों में अभिव्यक्त किया है। यक्षी पद्मावती की क्षीणकाय शरीर रचना में नारी सुलभ मृदुता एवं लोच तथा सुरुचिपूर्ण अलंकरण, विशेष रूप से ध्यातव्य हैं। कुछ उदाहरणों में पद्मावती के एक या दोनों पावों में नागी की आकृतियाँ भी बनी हैं। प्रतिमालक्षण की दृष्टि से एलोरा की पार्श्वनाथ मूर्तियाँ और उनमें दिखाये गये उपसर्ग स्पष्टतः बादामी और अयहोल की पार्श्वनाथ मूर्तियों का परवर्ती विकसित रूप दिखलाती हैं। (चित्र ११, १२) । गुफा सं० ३२ के उदाहरणों में ही शम्बर के उपसर्गों का सर्वाधिक विस्तारपूर्वक उकेरन हुआ है (चित्र १४, १५, १६ )। २४. महावीर :
वर्तमान अवसर्पिणी युग के २४वें अन्तिम तीर्थंकर महावीर हैं। महावीर महान धर्म, व्याख्याता, लोकनायक, सुधारक एवं विश्व हितचिन्तक भी थे। जैन शास्त्रों के अनुसार अन्य तीर्थंकरों के समान महावीर के जीव ने भी विभिन्न भवों में सत्कर्मों का संचय कर तीर्थंकर पद प्राप्त किया था । श्वेताम्बर परम्परा में उनके २७ दिगम्बर परंपरा में ३३ पूर्वभवों का वर्णन है।
महावीर का जन्म (ल० ५९९ ई० पू०) विदेह के कुण्डपुर नामक. नगर के राजा सिद्धार्थ के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम । प्रियकारिणी था ।२३७ कुण्डपुर कहाँ था, इस बात को लेकर पश्चात् कालीन जैन परम्परा में यद्यपि कुछ भ्रांति है किन्तु अन्त में दोनों ही परम्पराओं के अनुसार कुण्डपुर को विदेह में स्थित माना गया है। प्राचीन वैशाली२३८ ( बिहार ) के समीपस्थ वासुकुण्ड नामक ग्राम से प्राप्त मुद्रा व कुछ अन्य प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने इसे ही प्राचीन कुण्डपुर और महावीर की जन्मभूमि माना है ।२३९
सिद्धार्थ के भवन के आँगन में अन्य तीर्थंकरों की भाँति देवों ने छह
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