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तीर्थकर (या जिन) : ९९ - अरनाथ का लांछन दिगम्बर परम्परा में मत्स्य बताया गया है जबकि यक्ष और यक्षी यक्षेन्द्र और धारिणी ( या तारावती ) हैं । १०वीं शती ई० की सहेठ-महेठ ( गोंडा, उ० प्र०) से प्राप्त मत्स्य लांछन से युक्त अरनाथ की एक मूर्ति राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सुरक्षित है। कुछ अन्य मूर्तियाँ मध्यप्रदेश के अहाड़, मदनपुर एवं बजरंगगढ़ तथा बारभुजी गुफा से प्राप्त हुई हैं ।२०० एलोरा में अरनाथ की कोई मूर्ति नहीं है। १९. मल्लिनाथ :
उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ का जन्म मिथिला नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री राजा कुम्भ के यहाँ हुआ था। इनकी माता प्रजावती थो । मृगशिर सुदी एकादशी के दिन अशिरानी नक्षत्र में माता प्रजावती ने जिन बालक को जन्म दिया जो सभी लक्षणों से युक्त थे और जिनका देवों ने सुमेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीरसागर के जल से अभिषेक किया व 'मल्लिनाथ' नाम रखा । २०१ श्वेताम्बर परम्परा में मल्लिनाथ को नारी तीर्थंकर बताया गया है। नायाधम्मकहाओ में नारी तीर्थंकर मल्लिनाथ के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं के विस्तृत उल्लेख हैं ।२०२ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार माता के गर्भकाल में पूष्यशय्या पर सोने का दोहद उत्पन्न हुआ अतः महाराज कुम्भ ने नामकरण के समय इनका नाम 'मल्ली' रखा ।२03
मल्लिनाथ की आयु पचपन हजार वर्ष व शरीर पचीस धनुष ऊँचा था। कूमारकाल के सौ वर्ष व्यतीत हो जाने पर जब इनके विवाह के लिये नगर सजाया जा रहा था तभी इन्हें अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो आया और संसार से विरक्ति हो गयी। छद्मस्थ अवस्था में छह दिन बीत जाने पर अशोक वृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। धर्मोपदेश हेतु विहार करते हुए जब उनकी आयु का एक माह शेष रह गया तब सम्मेदाचल पर फाल्गुन शुक्ला पंचमी के दिन इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया ।०४ ____ नारी तीर्थंकर के रूप में उकेरित ११वीं शती ई० की एक श्वेताम्बर मूर्ति उन्नाव से मिली है और वर्तमान में राज्य संग्रहालय, लखनऊ में सुरक्षित है। मूर्ति में वक्षस्थल का उभार और वेणी के रूप में प्रदर्शित केश रचना द्रष्टव्य है। दिगम्बर परम्परा की तीन मूर्तियाँ क्रमशः
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