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७२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
गोम्मटेश्वर की एलोरा में १५ से अधिक मूर्तियाँ हैं वहीं आदि तीर्थंकर ऋषभ की मूर्तियाँ तुलनात्मक दृष्टि से अत्यल्प हैं। एलोरा तथा दक्षिण भारत के अन्य स्थलों पर ऋषभ मूर्तियों की न्यूनता का अभाव सम्भवतः इस बात का संकेत है कि व्यवहारिक यानी मूर्त अभिव्यक्ति में ऋषभनाथ पार्श्व एवं महावीर की तुलना में कम लोकप्रिय थे ।
ल० ८वीं शती ई० में मूर्तियों में ऋषभ के वृषभ लांछन और ९वीं१०वीं शती ई० में पारम्परिक यक्ष-यक्षी गोमुख और चक्रेश्वरी का अंकन प्रारम्भ हुआ '' १२१ ऋषभ की जटा, वृषभ लांछन, गाय के मुख वाले परशुधारी गोमुख यक्ष तथा शंख, चक्र, गदा धारिणी गरुडवाहना चक्रेश्वरी ऋषभ के निरूपण में स्पष्टतः शिव और विष्णु के प्रभाव का संकेत देते हैं । ऋषभ के जीवन के पंचकल्याणकों एवं अन्य प्रसंगों का विस्तृत शिल्पांकन कल्पसूत्र के चित्रों और ११वीं - १२वीं शती ई० के ओसियाँ और कुम्भारिया जैसे स्थलों पर मिलते हैं जिनमें ऋषभ के जन्म के सन्दर्भ में मांगलिक स्वप्नों, विभिन्न कर्मों की शिक्षा देने, राज्याभिषेक, दीक्षा, कैवल्य एवं निर्वाण कल्याणकों का अंकन हुआ है ( चित्र ३७ ) ।
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एलोरा की गुफा सं० ३०, ३२ और ३३ में क्रमशः दो-दो और एक ऋषभ मूर्तियाँ मिली हैं । गुफा सं० ३० के दोनों उदाहरणों में ध्यानस्थ तीर्थंकरों के कन्धों पर लटकती केश वल्लरियों के आधार पर ऋषभनाथ की पहचान की जा सकती है । गुफा सं० ३२ के दो उदाहरणों में से एक में द्वितीर्थी और दूसरे में पंचतीर्थी तीर्थंकर मूर्तियों में जटाओं के साथ ऋषभनाथ का अंकन हुआ है जिनमें क्रमश: दो और पाँच तीर्थंकरों की कायोत्सर्ग और निर्वस्त्र मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं । गुफा सं० ३३ में भी द्वितीर्थी जिन मूर्ति में ऋषभनाथ की कायोत्सर्ग मूर्ति उत्कीर्ण है । इस प्रकार एलोरा में ऋषभ की केवल दो स्वतंत्र मूर्तियाँ मिली हैं और उनमें भी वृषभ लांछन एवं पारम्परिक यक्ष-यक्षी का अंकन नहीं हुआ है ।
(२) अजितनाथ :
उत्तरपुराण के ४८वें पर्व में दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ के जन्म से लेकर निर्वाण पर्यन्त कथा का संक्षेप में उल्लेख है । इनका जन्म साकेत नगरी के इक्ष्वाकुवंशीय काश्यपगोत्री राजा जितशत्रु के यहाँ हुआ इनकी माता का नाम विजयसेना था । १२४
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था।
पृथ्वी पर आने के
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