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४० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन के अनुसार विद्यादेवियों का अस्तित्व महावीर तथा बुद्ध के ही समय से था। पउमचरिय तथा वसुदेवहिण्डी विभिन्न विद्यादेवियों जैसे रोहिणी, प्रज्ञप्ति, सवास्त्रमहाज्वाला, गौरी तथा गान्धारी के विषय में जानकारी का प्राचीनतम स्रोत है। उसके बाद १६ विद्यादेवियों या महाविद्याओं की सूची बनी।६७ जैन शिल्प में लगभग आठवीं-नवीं शती ई० से ही इनका निरूपण मिलने लगता है ।६८ आगम ग्रन्थों में विद्याओं का आचरण जैन आचार्यों के लिए वर्जित था। पर कालान्तर में विद्यादेवियाँ, ग्रन्थ एवं शिल्प की सर्वाधिक लोकप्रिय विषय-वस्तु बन गयीं । जैन परम्परा में इन विद्याओं की संख्या ४८ हजार तक बतायी गयी है ।६१ बौद्ध एवं जैन साहित्य बुद्ध एवं महावीर के समय में जादू, चमत्कार, मंत्रों एवं विद्याओं का उल्लेख करते हैं ।७० नायाधम्मकहाओ में उत्पतनी ( उप्पयनी) एवं चोरों की सहायक विद्याओं का उल्लेख है ।७१ इस ग्रन्थ में महावोर के प्रमुख शिष्य सुधर्मा को मंत्र व विद्या का ज्ञाता बताया गया है। स्थानांगसूत्र में जांगोलि एवं मातंग विद्याओं के उल्लेख हैं।७२ सूत्रकृतांगसूत्र के पापश्रु तों में वैताली, अर्धवैताली, अवस्वपनी, तालुध्धादणी, श्वापाकी, सोवारी, कलिंगी, गौरी, गान्धारी, अवेदनी, उत्पतनी एवं स्तम्भनी आदि विद्याओं के उल्लेख हैं। सूत्रकृतांगसूत्र के गौरी एवं गान्धारी विद्याओं को कालान्तर में १६ महाविद्याओं की सूची में सम्मिलित किया गया।७४ पउमचरिय विद्यादेवियों के प्रारम्भिक विकास के अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। राम, लक्ष्मण, रावण एवं ग्रन्थ के अन्य पात्रों द्वारा युद्धादि के समय अनेक प्रकार की विद्याओं की प्राप्ति के लिए पूजन आदि के सन्दर्भ मिलते हैं।७५ राम व लक्ष्मण द्वारा प्राप्त की गयी गरुडा और केसरी विद्याओं से ही कालान्तर में अप्रतिचक्रा और महामानसी विद्याओं का स्वरूप विकसित हुआ जिनके वाहन गरुड और सिंह हैं । ७६ विद्याओं की प्राप्ति के लिए वीतरागी तीर्थंकरों की आराधना के सन्दर्भ सर्वप्रथम पउमचरिय में ही मिलते हैं।७७ एक स्थल पर रावण द्वारा शान्तिनाथ के मन्दिर में बहुरूपा या ( बहुरूपिणी ) महाविद्या की सिद्धि करने तथा युद्धस्थल में इस महाविद्या के रावण के समीप ही स्थित होने के सन्दर्भ महत्वपूर्ण हैं।७८ । एक स्थल पर रावण द्वारा विविधरूपधारी हजारों विद्याओं की सिद्धि का भी उल्लेख हुआ है ।७९ इस ग्रन्थ में रावण द्वारा सिद्ध अनेक विद्याओं में से एक स्थल पर ५५ विद्याओं की सूची भी दी गयी है जिनमें से प्रज्ञप्ति, कौमारी, लघिमा, व्रजोदरी, वरुणी, विजया, जया,
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