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पापका भान ।
करता हूँ । ये पाप क्षणभरमें स्वार्थके रूपमें, क्षणभरमें अभिमानके रूपमें, क्षणभरमें लालसाओंके रूपमें, क्षणभरमें झूठके रूपमें, क्षणपर धन दौलत के गुमान के रूपमें और क्षणभरमें किसी और दूसरे ही रूपमें, इस तरह निरन्तर ही मुझे दर्शन दिया करते हैं । इनकी गिनतीका काम मेरी बुद्धि नहीं किन्तु मेरा हृदय सदा प्रज्वलित रहता है। उसे आराम नहीं । मकड़ीके जालेमें ज्योंही कोई मक्खी आकर फँसी कि मकड़ी तुरन्त ही उसे पकड़नेको दौड़ती है, ठीक उसी तरह मेरे आध्यात्मिक शरीरमें ज्योंही कोई पापरूपी मक्खी आकर फँसी कि उसे मेरा हृदय शीघ्र ही पकड़ लेता है ।
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जीवनके जिस किसी प्रदेशमें कोई बुरा विचार उत्पन्न हो, कर्त्तव्यका पूर्णतया पालन न हो, करने योग्य कोई श्रेष्ठ कार्य न किया जा सके, किसी पवित्र गुणकी निन्दा या बुराई हो जाय, अथवा अपनी कोई निर्बलता न सुधारी जा सके तो मेरा निरन्तर जागृत रहनेवाला उपयोगमय हृदय तुरन्त ही इन सब बातोंको देख लेता है । मेरा हृदय अन्त्यन्त ही सूक्ष्मदर्शी और मर्मका जाननेवाला है । मुझे दुखी बनानेकी इसमें बड़ी प्रचण्ड शक्ति है । मैं साधारण भावसे भी किसीका कुछ अपराध कर लेता हूँ तो मुझे सारे दिन-रात जरा भी चैन नहीं पड़ता । मैं अपने नौकरकी तनख्वाह यदि किसी दिन देरसे देता हूँ तो मेरा अन्तरात्मा एकदम पुकार उठता है कि "अरे ओ पापी, तू इतना अन्याय करता है !" कदाचित् मैं कहूँ कि तनख्वाह कल दूँगा, तो वह बोल उठता है कि
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हृदय करता है । क्षणभरके लिए भी
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