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जैनहितैषी
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कि बाहरसे भी इलाजके लिए लोग उनके पास आते हैं और ओषधि मँगाते हैं। भारतोदय नामका हिन्दी साप्ताहिक पत्र भी यहाँसे निकलता है।
यहाँके अधिष्ठाता तथा कार्यकर्ता बड़े ही सज्जन पुरुष हैं। उनका व्यवहार दर्शकों प्रति बड़ा चित्ताकर्षक है। इस विद्यालयमें दिखावा बहुत कम है और काम बहुत ज्यादह होता है। यहाँके पठनक्रमसे यद्यपि हम पूर्ण रूपसे सहमत नहीं हैं; परंतु यह एक ऐसा प्रश्न है कि जिसका सम्बंध विद्यालयकी कमेटी अथवा आर्यसमाजसे है । चाहे पठनक्रम कुछ हो, तात्पर्य इससे है कि बालकोंपर शिक्षाका क्या प्रभाव पड़ता है । आया बालकोंका स्वास्थ्य और उनका ज्ञान बढ़ता है या नहीं ? सो दोनों चीजें यहाँ पर बढ़ रही हैं। बच्चोंका चरित्रगठन खूब होता है। यहाँकी शिक्षा पक्षपातरहित उदार है। यद्यपि यह संस्था आर्यसमाजकी है परंतु बच्चोंके हृदयोंमें पक्षपातका बीज यहाँ नहीं बोया जाता
और न किसी धर्मविशेषसे अथवा व्यक्तिविशेषसे द्वेष रखना सिखलाया जाता है। हमने विद्यालयके एक कमरेमें दिगम्बर जैनद्वारा प्रकाशित स्वर्गीय सेठ माणिकचन्द्रजीका कैलेंडर भी लटका हुआ देखा। जान पड़ता है कि अब पक्षपात और द्वेष संसारसे कम होता जाता है । जैनियोंको भी कम कर देना उचित है। अब समय इस बातका है कि प्रेमसे अपने मतके सिद्धान्तोंका प्रकाश किया जाय ।आपसमें लड़ने भिड़ने और द्वेषभाव रखनेका अब समय नहीं रहा है।
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