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विविध-प्रसङ्ग।
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यमें एक नोट करते हुए लिखते हैं-"हमारी समझमें नहीं आता कि हम जैनसमाजके इस लांछनास्पद अज्ञानके लिए रोवें या दुनियाको झुकानेवालों (पं० रामभाऊ आदि) की अक्लकी तारीफ़ करें। 'गद्दी खाली है' इस कारणसे निरन्तर आँसू बहानेवाले शेतवाल भाइयो ! करो इस गुरुके स्वाँगका सत्कार और होने दो जातिकी उन्नति !"
७ तेरहपंथियोंके भट्टारक । चौंकिए नहीं, हम आजकलके कुछ त्यागी ब्रह्मचारियोंको तेरहपंथियोंका भट्टारक कहते हैं। हमारी समझमें ये भी एक तरहके भट्टारक हैं । तेरहपंथी भाई बीसपंथियोंके भट्टारकोंको छोड़कर आजकल इन्हींकी पूजा करते हैं। मूर्खता और निरक्षरतामें तो ये भट्टारकोंकी ही जोड़के हैं, परन्तु चरित्रमें अभी इनका नम्बर बहुत पीछे है । पर, यह आशा अवश्य है कि यदि श्रावकोंकी भक्ति इनके पीछे इसी तरह अन्धी होकर दौड़ती रही तो ये बहुत ही जल्दी अपनी इस कमीको पूरी कर डालेंगे । यहाँ आये हुए पं० मूलचन्दनीसे मालूम हुआ कि श्रीमान् त्यागीजी महाराज मुन्नालालजी क्षुल्लक किसी एक स्थानके मन्दिरमें अपनी एक पेटी पैक करके और शीलमुहर लगाकर रख गये थे। उनके बाद ही वहाँ ऐलक पन्नालालजी जा : पहुँचे । त्यागियोंमें पारस्परिक सौहार्द कैसा होता है, सो तो प्रायः सब ही लोग जानते हैं और फिर किसीने जिक्र कर दिया कि मुन्नालालजी अपनी एक पेटी यहाँके पंचोंके सिपुर्द कर गये हैं ! सुनते ही
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