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जैनहितैषी
तो आप लोग और रायदेशके पंच मुझे जो सजा देंगे, उसे मैं सहर्ष स्वीकार करूँगा।" हमारा विश्वास है कि मोतीलालजी इसी प्रतिज्ञापत्रकी कृपासे ही आज अपनी पाँचों अँगुली घीमें तर कर रहे हैं। यदि गुरुजीको वे प्रतिज्ञापत्रके द्वारा धर्मप्रचारका विश्वास न दिलाते और गुरुजी सिफारिश न करते तो यह चार दिनाकी चाँदनी उन्हें लभ्य न होती; परन्तु ऐसे अच्छे मौकेको मोतीलालजी जैसे पुरुषरत्न कैसे चूक सकते थे ? और गुरुजी जैसे दुनियाकी चालबाजियोंसे सर्वथा अज्ञान और मनुष्यप्रकृतिको न पहचाननेवाले भोले धर्मप्रचाराभिलाषी भी क्या बारबार मिलते हैं ? आपने गुरुजीको बना लिया और लिख दिया प्रतिज्ञापत्र । अब गुरुजी और रायदेशके पंच उक्त प्रतिज्ञापत्रको शहद लगाकर चाँटा करें और भट्टारकजी महाराज अपनी चालबाज़ीपर खुश होते हुए हलुआ पूड़ियोंपर हाथ साफ किया करें।
६ शेतवालोंके बालक-भट्टारक । ___ लातुर (निजाम ) में शेतवाल जातिके भट्टारकोंकी एक गद्दी है। वह अभीतक खाली थी । वर्धाके श्रीयुत यादव दाजीबा श्राव
के पत्रसे मालूम हुआ कि अब उक्त गद्दीपर एक बालक बिठा दिया गया है और पं० रामभाऊजी उसकी पूजा उपासना करनेके लिए भक्तमण्डली एकट्ठी कर रहे हैं । बालककी उम्र सिर्फ ११ वर्षकी है । वह मराठीकी सिर्फ तीन कक्षायें पढ़ा है ! शेतवाल समाज अब अपने धर्मकी और समाजकी उन्नति इसी बालकके चरणोंके प्रसादसे करेगा ! 'प्रगति आणि जिनविनय' के सम्पादक इस विष
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