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विविध-प्रसङ्ग।
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पत्रोंद्वारा भट्टारकोंका कच्चा चिट्ठा प्रकाशित करके इस अन्धश्रद्धाको देशनिकाला दे देना चाहिए । इससे अच्छा और कोई उपाय इस रोगसे मुक्त होनेका नज़र नहीं आता।
९ एक तात्कालिक उपाय । इस समय भट्टारकोंके चातुर्मास हो रहे हैं । शायद ही ऐसा कोई भट्टारक हो जिसका खर्च २०-२५) रुपये रोजसे कम हो । ये सब रुपये निरीह भोले श्रावकोंसे वसूल किये जाते हैं । एक दो स्थानोंसे हम जो समाचार मिले हैं उनसे बड़ा ही दुःख होता है
और भट्टारकोंपर बड़ी ही घृणा उत्पन्न होती है । इन लोगोंने अब बड़ा ही करालरूप धारण किया है । ये श्रावकोंके द्वारोंपर धरणा देकर बैठते हैं, लंघनें करते हैं, कमंडलु फोड़ते हैं. और जब इससे भी काम नहीं चलता है तब अपने गरीब सिपाहियोंसे श्रावकोंको पकड़वाते और पिटवाते तक हैं! गरज यह कि जब तक रुपया नहीं पा लेते तब तक श्रावकोंका पिण्ड नहीं छोड़ते हैं! भाइयो : यह क्या है ? जैनधर्मकी इससे अधिक दुर्दशा और क्या हो सकती है ? ग्रामीण अज्ञानी श्रावकोंमें यद्यपि इस विपत्तिसे बचनेकी शक्ति नहीं है; परन्तु यदि हमारे समाजके शिक्षित चाहें तो इस मर्जका तात्कालिक उपाय हो सकता है । प्रयत्न करनेसे, आन्दोलन करनेसे, सब लोगोंकी सम्मतिसे ये लोग अनधिकारी ठहराये जा सकते हैं और गवर्नमेंटके द्वारा इस तरहके अत्याचार करनेसे रोके जा सकते हैं । हम आशा करते हैं कि हमारे गुजरातीभाई इस विषयसें आगे बढ़नेका साहस दिखलायँगे ।
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