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विविध-प्रसङ्ग ।
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गई और ८२३ पर पहुँच गई ! अधिक उम्रवालोंकी मृत्यु भी
और जातियोंकी अपेक्षा जैनोंमें अधिक हुई। २०४६० जैनोंमें १२१४ मर गये, अर्थात् फी हज़ार ५९ मरे । यहाँके प्रसिद्ध अँगरेजी पत्र क्रानिकलमें एक लेखकने इसका कारण यह बतलाया है कि यहाँ जैन लोग बहुत ही तंग जगहोंमें अपनी गृहस्थियोंको लेकर रहते हैं। उनकी रायमें जैनधनिकोंको निर्धन जैनोंके लिए पारसियोंके समान खुली हवादार जगहोंमें सस्ते किरायेके मकान बनवा देना चाहिए । हो सकता है कि अधिक मृत्युसंख्याका यह भी एक कारण हो; परन्तु हमारी समझमें इनके सिवाय और भी कई कारण होंगे जिनके विषयमें जैनशिक्षितोंको विचार करना चाहिए।
१२ विजातीय विवाह शुरू हो गये। जैनसमाजके भीतर जो अनेक छोटी बड़ी जातियाँ हैं उन सबमें परस्पर बेटी व्यवहार होने लगे, इसके लिए जो आन्दोलन शुरू हुआ है उसका फल प्रकट होने लगा । गत वर्ष कोल्हापुरमें प्रो० लढे एम. ए. ने जो पंचम जातीय हैं-अपनी भतीजीका ब्याह-एक चतुर्थ जातिके युक्कके साथ किया था यह हितैषीके पाठकोंको स्मरण ही होगा । इसके विरुद्ध कुछ नासमझ लोगोंने सिर भी उठाया था, पर उसका फल कुछ न हुआ और अब उनके विरोधकी कुछ भी परवा न करके हालहीमें नागराल (बीजापुर) निवासी पंचम जैन श्रीयुत सिद्धापा कुपानहट्टीने अपने लड़केका विवाह निडौली ग्रामकी एक चतुर्थ जातीय कन्याके साथ कर डाला। एह लेकी अपेक्षा यह दूसरा विवाह इस दृष्टिसे और भी अधिक महत्त्व
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