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जैनहितैषी -
था; परन्तु ग्रन्थ आना तो दूर रहा, पत्रका उत्तर भी न मिला ! जब आपका बड़ा सूचीपत्र कई वर्षोंमें तैयार होगा, तब यदि एक छोटी सी सूची ही आप छपा देवें जिसमें ग्रन्थोंके नाम, कर्ताओंके नाम, ग्रन्थोंकी श्लोकसंख्या, सिर्फ इतनी ही बातें रहें तो क्या भवनका कुछ गौरव कम हो जायगा ? क्या यह समाज नहीं सोच सकता कि जब तक सूची ही नहीं है तब तक किसी पुस्तकालयका उपयोग ही क्या हो सकता है ? ईडर या नागौर के भण्डा रमें और आपके भवनमें हम तो कोई विशेष अन्तर नहीं देखते हैं।
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बड़े अफ़सोसकी बात है कि आप सबके सारे आक्षेपोंको निर्मूल बतलाते हुए भी यह नहीं प्रकट करते हैं कि भवनके हिसाब किताका क्या हाल है ? उसकी रिपोर्ट क्यों प्रकाशित नहीं की जाती है ? क्या यह भी सूचीपत्र जैसा कोई महान् कार्य है ? यदि आप यही बतला देवें कि भवनमें आजतक कितनी आमदनी हुई और कितना खर्च हुआ तथा अबतक कितने ग्रन्थ लोगोंने नकल कराके मँगवाये और कितने देखने के लिए, तो समाजको बहुत कुछ संतोष हो जाय । आपका कर्तव्य है कि इस विषय में गोलमाल उत्तर न देकर समाजको स्वर्गीय बाबू देवकुमारजीकी इस बहुत ही उपकारिणी संस्थाका वास्तविक परिचय दें और उसे सन्तुष्ट करें । ११ बम्बई में जैन सबसे अधिक मरते हैं ।
बम्बई नगरकी मृत्युसंख्याका लेखा देखनेसे मालूम होता है कि यहाँ जैनोंकी मृत्यु सबसे अधिक होती है । षिगत वर्ष हज़ार जैनबच्चा ७९२ मरे थे; परन्तु गतवर्ष उनकी संख्या और भी बढ़
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