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विविध-प्रसङ्ग।
व किसी भी प्रकारके जल्सेमें हम लोग पहुँच ही नहीं पाते और न हम लोगोंके हितकी कोई बात ही की जाती है । मानों हमारे परवार भाई हमें बिलकुल ही और सब तरफसे छोड़ चुके हैं। मेरी इस छोटी बुद्धिसे मुझे अँचता है कि उनका कर्तव्य है कि हम लोगोंकी गल्तियाँ हमें सुझावें और यदि उचित समझें तो कोई दंड भी हमें देवें-हम लोग दण्ड भोगनेके लिए तैयार हैं। ___ कहीं कहीं हमारे श्रीमानों, और विद्वानोंके अटूट परिश्रमसे जैनपाठशालायें, और वाचनालय आदि दिखने लगे हैं जो कि सशिक्षा देने और कुरीतियोंका काला मुँह करनेमें शक्तिभर परिश्रम कर रहे हैं और उन्हीं सज्जनोंके प्रतापसे हमारा अधिकांश समाज जाग उठा है; पर खेद है कि उसी समाजका एक भाग बहुत बुरी हालतमें है-उसके जगानेका कोई भी प्रयत्न हमारे भाई नहीं करते । जिस स्थानका मैं जिक्र करता हूँ वहाँ एक
जैनपाठशाला तथा एक वाचनालय भी है । वहाँके एक सुयोग्य शिक्षक और कार्यकर्त्ताने एक रेलवे बाबूका लडका ( जो कि जातिके विनैकावार हैं ) शालामें भरती कर लिया। कुछ दिनों बाद जब दूसरे कार्यकर्ताओंकी दृष्टि इस ओर पड़ी तब उस लड़केको पाठशालामें आनेसे साफ इंकार कर दिया गया । बेचारे पंडितजीने बहुत कुछ कहा सुना, सभा की, पर उनकी एक भी न चली । ऐसे ही यहाँके वाचनालयकी पुस्तकें भी बहुत कोशिश करने पर पढ़नेको नहीं मिलतीं । यद्यपि हम इस समय धर्मशून्य हैं, तथापि विद्वानोंकी संगतिसे हमारा सुधर जाना असंभव नहीं है । हम लोगोंकी संख्या
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