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विविध-प्रसन ।
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जाते, आज ५ वर्षसे प्लेग आपसे आप कम होता जारहा है; परन्तु द्वितीय खण्डमें, जहाँ चहे ५० से लेकर 20 फीसदी तक मारे गये, प्लेगका कम होना तो दूर रहा, उलटा वह और बढ़ा । केवल डा. केकहीका यह मत नहीं है, और लोगोंने भी पहले इसी बातको कहा है। १९१२ में मद्रासमें इम्पीरियल सेनेटरी कानफ्रेंस हुई थी, जिसमें बा० मोतीलाल घोष और स्वर्गीय बा० गंगाप्रसाद वर्मा भी निमन्त्रित थे। उसमें भी एक डाक्टरने कहा था कि आज तक लाखों चूहे मारे गये, परंतु प्लेगकी गतिमें इस हत्यालीलाका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा । जब कुछ योग्य डाक्टर इस मतको जोरके साथ आगे रख रहे हैं तो कमसे कम देशकी म्यूनिसिपलटियोंका तो यह कर्तव्य है कि वे इस प्रश्नके ऊपर पूरा विचार करें, और यदि देखें कि चूहोंके मरनेसे कुछ नहीं होता, तो उन बेचारोंको त्राण दें, और अपने हजारों रुपये किसो उपयोगी काममें लगावें । हालहीमें पंजाबमें प्लेगके प्रकोपसे ३५ लाख आदमियोंसे अधिकके मरजाने पर, पंजाबके लेफ्टीनेन्टगवर्नरकी धर्मपत्नी लेडी ओडायरने उस प्रान्तकी स्त्रियोंके नाम खुली चिट्ठी भेजी हैं । उसमें भी, आपने इसी बातपर जोर दिया है कि सारी आफ़तकी जड़ चूहे ही हैं, इन्हें न छोड़ो, घरको इनसे साफ़ रक्खो । घरोंको साफ़ रक्खो यह तो एक ऐसी बात है, जो सदा कही जा सकती है, परन्तु क्या चूहोंके पीछे भी हाथ धोकर पड़ जानेकी वैसी ही आवश्यकता है, इसमें सन्देह बढ़ता ही जाता है।
-प्रताप ।
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