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जैनहितैषी
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बढ़नेके कारण बालविवाह, वृद्धविवाह, कन्याविक्रय और 'अज्ञान ही मालूम होते हैं। क्योंकि यदि ये कारण न होते और हमारे परवार भाइयोंके ख्यालके मुताबिक मन्दिरोंमें व सभाओंमें न आने देने ही से हम लोगोंकी जाति बढ़ती होती तो आजकल इस खूबीसे विनैकावार जाति न बढती । मैं ऐसे परवारोंको भी जानता हूँ कि जिन्हें गरीबीके कारण परवारोंमें लड़की नहीं मिली और उन्हें विनैकावारोंमें अपनेको ब्याह कर परवश बिनैकाबार. बनना पड़ा। जैसा ख्याल आजकल कई परवार भाइयोंका हमारे विषयमें है उससे इस अज्ञको नहीं जान पड़ता कि धर्म और जातिकी तरक्की क्यों कर हो सकेगी? हम लोगोंकी अज्ञानता दूर करने और धर्मकी शिक्षा देनेके प्रयत्नसे भी बहुत कुछ हो सकता है। हमारे कई परवार माई हमें जातीय दंडके साथ ही साथ धर्मके मर्मसे भी अनभिज्ञ रक्खा चाहते हैं; नहीं जान पड़ता हमारे भाइयोंने इससे क्या फायदा सोच रक्खा है!
प्रार्थीःछोटेलाल ( विनैकावार ) जैन विद्यार्थी,
खुरई ( सागर )।
सूचना। सम्पादकके बीचमें बीमार हो जानेसे यह युग्म अंक पूरा न हो सका और कुछ विलम्बसे भी निकला । जितने पृष्ठ कम हैं वे आगामी अंकमें पूरे कर दिये जावेंगे।
-मैनेजर ।
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