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जैनहितैषी
त्यागीजीने पेटी मँगवाई । लोगोंने बहुत मना किया कि पेटी . मत खोलिए; परन्तु उन्होंने एक न मानी और पेटी खुलवा डाली ! देखा तो उसमें २०००) दो हजार रुपयेके नोट रखे हुए थे। खण्डवस्त्र मात्र रखनेवाले क्षुल्लकोंके पास नोट ! दो हज़ारके !! लोगोंके आश्चर्यका ठिकाना न रहा । हम यह जाननेके लिए उत्सुक हो रहे हैं कि इसके आगे क्या हुआ और अब उक्त रुपये किसके पास हैं । क्षुल्लकजी महाराजसे पूछना चाहिए कि उनके पास उक्त नोट कहाँसे आये और यदि वे किसी मंत्रके बलसे नोट बनाना जानते हों तो यह शुभसंवाद उनके भक्तवृन्दोंके पास अवश्य पहुँचा देना चाहिए ।
८ भट्टारकोंसे समाजकी रक्षा कैसे हो? इन भट्टारकों और त्यागियोंसे समाजकी रक्षा करनेका प्रधान उपाय अन्धश्रद्धाका काला मुँह कर देना है। यदि अन्धश्रद्धाको हमारे यहाँ स्थान न मिलता तो आज न भट्टारकोंके अन्यायोंसे हमें पीडित और लज्जित होना पड़ता और न ये त्यागियोंकी ही लीलायें देखनी पड़तीं । यह सब अन्धश्रद्धाकी कृपाहीका फल है । अन्धश्रद्धा उस पुरुषको अपने बड़प्पनका या पूज्यताका दुरुपयोग करनेके लिए ललचाती है जिसपर कि लोग श्रद्धा करते हैं । यदि अन्धश्रद्धा न हो तो न उपासकोंका ही अधःपतन हो और न उपास्य साधु भट्टारकोंको आज कल जैसी नीचवृत्तिका अवलम्बन करना पड़े । इसलिए जैसे बने तैसे-शिक्षाका प्रचार. करके, उपदेशका भ्रमण कराके, छोटे छोटे ट्रेक्टोंके द्वारा या समाचार
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