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विविध-प्रसङ्ग।
पर मामूली होनेसे ही क्या हो सकता है ? श्रावक होनेका फल तो उन्हें कुछ न कुछ मिलना ही चाहिए ! गवर्नमेंट जिस तरह आवश्यकता पड़ने पर किसी स्थानमें प्यूनीटिव पुलिस बिठा देती है
और उसका खर्च वहाँके रहनेवालोंसे बसूल करती है उसी तरह हमारा धर्म भी जिस स्थानके श्रावकों के लिए आवश्यक समझता है उस स्थानपर इस पाखण्ड-पुलिसको भेज देती है जो श्रावकोंकी अक्लको बहुतही जल्द ठिकाने ला देती है। अभागे गुजरातके श्रावको !
अपनी मूर्खताका, अन्धश्रद्धाका और अविचारशीलताका यह सुपरिणाम भोगो और तब तक भोगते रहो जबतक तुमने जैनधर्मका और उसके गुरुओंका वास्तविक स्वरूप नहीं समझ लिया है।
५ भट्टारकजीका प्रतिज्ञापत्र । जिस समय ब्रह्मचारी मोतीलालजी ईडरकी गद्दीपर बैठनेके लिए उम्मेदवार हो रहे थे उस समय आपने पूज्य पं० पन्नालालजी बाकलीवालको एक प्रतिज्ञापत्र लिख दिया था । गुरुनी (पं० पन्नालालजी) ने अब उक्त प्रतिज्ञापत्र सार्वजनिक पत्रोंमें प्रकाशित करवा दिया है। उसमें लिखा है कि “ मैं भट्टारक होनेपर ईडर तथा सागवाड़ा आदिके प्राचीन शास्त्रभण्डारोंका जीर्णोद्धार कराऊँगा, उनके प्रचारके लिए अर्थव्यय करूँगा, अपने उपासक श्रावकोंके प्रत्येक ग्राममें पुस्तकालय खोलूँगा, पाठशालायें स्थापित करूँगा, उपदेशकों, समाचारपत्रों और ग्रन्थमालाओंके द्वारा धर्मका प्रचार करूँगा । यदि मैं ऐसा न करूँ और कोई धर्मविरुद्ध या नीतिविरुद्ध कार्य करूँ, तथा तीन बार चेतावनी देनेपर भी न मानें,
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