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जैनहितैषी
वह कहाँ तक उचित है और उसके बन्द करनेका कुछ उपाय भी है या नहीं ?
तीर्थक्षेत्रोंके मुखियाओंको और मुकद्दमेबाज़ीके सूत्रधारोंको पहले यह सोचना चाहिए कि आजकलके समयमें रुपयेका क्या महत्त है और उसके सदुपयोग तथा दुरुपयोगसे किसी जातिकी उन्नति अवनतिसे कितना सम्बन्ध है ? तीर्थों में जो रुपया आता है उसका अधिकांश उन लोगोंकी कमाईका होता है जो सबेरेसे शामतक कठिन परिश्रम करके अपने कुटुम्बका निर्वाह करते हैं और परम्प. रागत धार्मिक विश्वासके कारण पुण्य समझकर आपलोगोंको सोंप. देते हैं । मुकद्दमें लड़ते समय आपको इन बेचारोंकी पसीनेकी कमा. ईका ख़याल अवश्य कर लेना चाहिए। जिन रुपयोंसे हज़ारों भूखे प्यासे दरिद्रियोंके प्राण बचाये जा सकते हैं, हजारों निरक्षर विद्वान बनाये जा सकते हैं, लाखों दुखी जीवोंकी रक्षा की जा सकती है और धर्मप्रभावनाके बीसों कृत्य किये जा सकते हैं उन्हीं रुपयोंक धर्मके भयसे पानीमें फेंकते समय-वकील बैरिस्टरोंकी जेबोंमें भरते समय बड़े ही अफसोसकी बात है कि न आपके हाथ ही काँपते है
और न आप इसको कुछ बुरा ही समझते हैं। - गत पचास वर्षोंमें मक्सी, सम्मेदशिखर, सोनागिर, पावापुरी अन्तरिक्ष, आदि तीर्थोके मुकद्दमोंमें बहुत ही कम खर्च हुआ होगा तो लगभग २५ लाख रुपया अवश्य ही खर्च हो गया होगा ! क्या आप समझते हैं कि इन सब रुपयोंका सदुपयोग हुआ है और इनसे इन मुकद्दमोंसे अच्छे और कोई कृत्य न किये जासकते थे ?
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