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जैनाहतेषी -
भारतमें शिक्षाकी उन्नति ।
भारतवर्ष अपनी प्राचीन सभ्यता धन और प्रतापको कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक शिक्षा मुफ्त और ज़रूरी न दी जायगी। यदि भारतसरकार शिक्षाको मुफ्त और ज़रूरी रूप में नहीं देना चाहती तो भारत के नेताओं, राजा महाराजाओं, जागीरदारों, कमेटीके मेम्बरों, सभाओं और शुभचिन्तकोंका कर्तव्य है कि वे स्वयं ही इस कार्य्यको अपने हाथमें लें । हर एक मन्दिर और धर्मशालाके साथ वाचनालय और पुस्तकालय खोलें जहाँ वे लोग जिनको दिनमें फुर्सत मिलती है शिक्षा प्राप्त कर सकें । मज़दूरोंके लिए हर एक गाँवमें और नगरकी हर एक गली में रात्रिपाठशालायें खोली जायँ ।
जरूरी सामाजिक राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक विषयों पर देशी भाषाओं में पुस्तकें छापी जायँ और उनको मुफ्त या थोड़ी से कीमत पर साधुओं और ब्राह्मणोंमें जो देशी भाषायें जानते हों बाँट जाय । क्योंकि साधुओं और ब्राह्मणोंका आम लोगों पर बहुत प्रभाव है । ज्यों ही इन धार्मिक श्रोणियोंके समय और ताकतों क जो दुर्भाग्य से इस समय नष्ट हो रही हैं सामाजिक राजनैतिक और धार्मिक विषयोंके सुधारके लिए काममें लगाया जायगा, त्यों ही हिन्द जाति अवश्यमेव उन्नत होगी । अन्य सभ्य जातियाँ कुदरत तत्त्वोंको यानि अग्नि, वायु, जलको, रेलों, स्टीमरों, मिलों, हवाईजहा जोंमें लगा रही हैं और अपनी सभ्यता, धन और अभ्युदयको बढ़
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