Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 75
________________ नामसे पुकारते है। कल कचहरियों, है, वे भलीभाँकि मुकद्दमेबाजीके दोष। वर्षके सच्चे हितैषी थे ) अपनी पुस्तक " भारतसे हम क्या सीख सकते हैं" में लिखा है कि प्राचीन आर्यगण सत्य बोलनेके लिए बहुत प्रसिद्ध थे। परन्तु शोक है कि आज कल हम उसी भारतके निवासी और उसी प्रशंसित आयजातिकी सन्तान इतने बदनाम हो गये हैं कि यूरोप अमेरिका और अन्य सभ्य देशके लोग हमारे नामसे घृणा करते हैं। विदेशी लोग हमको झूठे, कपटी, छली और दगाबाजके नामसे पुकारते हैं। जिन लोगोंको आज कल कचहरियों, अदालतोंकी कार्रवाईका ज्ञान है, वे भलीभाँति जानते हैं कि कितने लोग दीवानी फौजदारी अदालतमें कैसा झूठ बोलते हैं और कदाचित् उतना झूठ वे कचहरीके बाहेर कभी नहीं बोलते होंगे । अनेक जन चार आनेके लिए पवित्रसे पवित्र नामोकी शपथें खाते हैं, जिसका परिणाम यह हुआ कि आज कल हमारी जाति असत्य, छल, कपटके लिए बहुत बदनाम हो गई है । यहाँतक कि परस्पर मित्रों और रिश्तेदारोंमें भी एक दूसरेपर विश्वास नहीं रहा और इसी लिए भारतवासी वाणिज्य, तिजारतमें भलीभाँति उन्नति नहीं कर सकते। इस मुकद्दमेबाज़ीसे भारतवासियोंको जो हानि पहुँचती हैं वह बुद्धिमानोंसे छिपी नहीं । असल रकमसे पाँच गुणा अधिक मुकद्दमा पर खर्च हो जाता है और उभयपक्ष ( फरीकेन ) मुकद्दमेबाजीसे बरबाद हो जाते हैं। इस कारण हमें पञ्चायत करनी चाहिए। टहलराम गंगाराम जमादार । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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