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जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा।
खोदता हूँ तो दूसरे मेरे लिए कुँवा खोदेंगे । उसने पहले सरनबीके ठाकुरोंसे भारी कर वसूल किया, फिर रतनसिंह बेदवन्त पर हमला किया और उसको शूली पर चढ़ा दिया। पश्चात् भट्टियोंपर आक्रमण किया और सबको मार डाला । ३०० में से केवल एक अपनी स्त्रीसहित बचकर भाग सका । फिर शीघ्र ही नाहरसिंह और पूरनसिंह इन दो प्रसिद्ध ठाकुरोपर आक्रमण किया और उनको कैद करके बीकानेर भेजा जहाँ वे दोनों शूली पर चढ़ा दिये गये। ___ सूरतसिंहजीने अमरसिंहके इस वीरताके कार्यसे प्रसन्न होकर उसको अपने महलमें अपने साथ भोजन करनेकी आज्ञा देकर सम्मानित किया । __सन् १८१५ ईस्वीमें अमरचन्द्रनी सेनापति बनाकर चुरूके ठाकुर शिवसिंहके साथ युद्ध करनेको भेजे गये । अमरचन्द्रने शहरको घेर लिया और शत्रुका आना जाना रोक दिया। जब ठाकुरसाहब अधिकः कालतक न ठहर सके तो उन्होंने अपमानकी अपेक्षा मृत्युको उचित समझा और आत्मघात कर लिया। अमरचन्द्रकी इन सेवाओंसे राजा बड़ा प्रसन्न हुआ, यहाँतक कि उसको रावकी पदवी , एक खिलत तथा सवारीके लिए एक हाथी प्रदान किया। । परन्तु अब अमरचन्द्रके जीवनने पल्टा खाया । उसके भाग्यके सितारेकी ज्योति और कान्ति धीरे धीरे मलीन होने लगी। उसकी विजयसे उसके शत्रुगण ईर्षावश भड़क उठे और उसके नाश--
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