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जैनहितैषी
- सन् १८०८ ईस्वीमें जोधपुरनरेश मानसिंहने बीकानेर पर आक्रमण किया । इस अभागे राज्यमें इन्द्रराज सिंघीकी अधीनतामें एक सेना भेजा गई जिसमें कितने ही अधीन राजाओंके वीरगण तथा राजपूतानेके काल अमीरखाँके भी वीर सिपाही शामिल थे। सूरतसिंहने भी सेना इकट्ठी की और अमरचन्द्रको उसका सेनापति बनाकर शत्रुको रोकनेके लिए भेजा । दोनों सेनायें बपरीके मैदानमें मिलीं । थोड़ी देर तक घमासन युद्ध होनेके बाद-जिसमें अमरचन्द्रके दो सौके करीब आदमी काम आगये थे-अमरचन्द्र बीकानेरकी तरफ़ लौट पड़ा । विजयी इन्द्रराजने उसका पीछा किया और अन्तमें दोनों राज्योंमें गजनेरमें सन्धि हो गई।
सूरतसिंहके राज्यमें बीकानेरके ठाकुर कुछ स्वाधीनसे हो चले थे। इस कारण महाराजने इस असन्तोषजनक दशाको समूल नष्ट करने, नीच ठाकुरोंको दण्ड देने और उनकी करतूतका फल उन्हें चखानेके लिए अमरचन्दको भेजा। चार वर्षतक अमरचन्द इस कार्यमें लगा रहा । इसके कहनेमें हमें संकोच नहीं होता कि उसने अपने कर्त्तव्यके पालनमें बहुत ही निष्ठुरता दिखाई और शोणितसरिता बहाई जिसके लिए वह अवश्य कलङ्की है। ___ हा ! यह उसे कभी न सूझा कि जो मैं दूसरेके लिए कर रहा हूँ वही मेरे लिए भी एक रोज़ होगा। यदि मैं दूसरोंके लिए गड्ढा ___ १ इन्द्रराज सन् १७६७ ईस्वीमें ओसवाल जातिके सिंघवी कुलमें सोजतमें पैदा हुआ था । ओसवालोंमें यही सबसे बड़ा जेनरल हुआ है। इसने न केवल बीका. नेरके राजाको हराया, किन्तु जयपुरका मान भी इसीने गलत किया । सन् १८१५ ईस्वीमें यह जोधपुरमें मार डाला गया ।
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