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जैनहितैषी
दोनों ही नहीं हैं । यह ठीक है कि कभी कभी किसी एक पक्षकी ओरसे अधिक अन्याय हो जाता है, परन्तु साथ ही यह बात भी है कि मौकरूपानेपर दूसरा पक्ष भी अपनी शक्ति भर अन्याय करनेमें कुछ बाकी नहीं रख छोड़ता । ये सब बातें यही प्रकट करती हैं कि दोनों ही अपनी अपनी प्रधानता चाहते हैं और वास्तवमें सन्धि करना उन्हें अभीष्ट नहीं है। ___ अब समय आ गया है कि कुछ शिक्षित लोग आगे बढें और इस आन्दोलनको उठा लेवें । यदि इस विषयमें जीजानसे परिश्रम किया जायगा और वह लगातार जारी रक्खा जायगा तो अवश्य सफलता होगी। सच पूछा जाय तो अभीतक इस विषयमें एक भी व्यवस्थित प्रयत्न नहीं किया गया है और यही कारण है जो इस ओर लोगोंका बहुत ही कम ध्यान गया है। ___ हमारी समझमें इसके लिए एक सभा स्थापित होनी चाहिए जिसमें दोनों ही सम्प्रदायोंके भाई मेम्बर बनाये जावें । यह सभा टेक्टोंके द्वारा, लेखोंके द्वारा, व्याख्यानोंके द्वारा, अपने विचारोंका प्रचार करे, और कमसे कम वर्षभरमें एक बार दिगम्बरी और श्वेताम्बरी कान्फरेंसोंके साथ साथ बारी बारीसे अपना अधिवेशन करे । प्रत्येक तीर्थके प्रत्येक मुकद्दमेंकी बुनियादका पता लगावे, उसके कारण मालूम करे और फिर उसके सम्बन्धमें दोनों पक्षके मुखियोंको पत्रव्यवहारसे या जरूरत हो तो डेप्यूटेशन भेजकर समझावे और सुलहकी कोशिश करे । इस पद्धतिसे यदि काम चलाया जायगा तो वर्ष ही दो वर्षमें इसका अच्छा फल नज़र आये बिना न रहेगा।
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