Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ इतिहास-प्रसङ्ग। ६२५ कहते हैं; परन्तु वास्तवमें यह मूल सूत्रकार तत्त्वार्थशास्त्रके कर्ता उमास्वामीका रचा हुआ है। श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्राद्भुतसलिलनिधेरिद्धरत्नोद्भवस्य, प्रोत्थानारम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैः कृतं यत् , स्तोत्रं तीर्थोपमानं प्रथितपृथुपथं स्वामिमीमांसितं तत् । विद्यानन्दैः स्वशक्त्या कथमपिकथितं सत्यवाक्यार्थसिद्धयै॥ इति तत्त्वार्थशास्त्रादौ मुनीन्द्रस्तोत्रगोचरा। प्रणीताप्तपरीक्षेयं कुविवानिवृत्तये ॥ १२४ ॥ आप्तपरीक्षाके अन्तके इन दो श्लोकोंसे इस विषयमें ज़रा भी शङ्का नहीं रहती है । इनका सारांश यह है कि:-तत्त्वार्थसूत्रके प्रारंभमें शास्त्र कारने अर्थात् भगवान् उमास्वामीने जो ‘मोक्षमार्गस्य नेतारं' आदि स्तोत्र बनाया है और स्वामी समन्तभद्रने जिसकी मीमांसा ( आप्तमीमांसा ) की है, मुझ विद्यानन्दने आप्तकी सिद्धिके लिए उसीका यह व्याख्यान किया ॥ १२३ ॥ इस तरह यह तत्त्वार्थसूत्रकी आदिके मंगलाचरणरूप स्तोत्रका विचार करनेवाली आप्तपरीक्षा रची गई। आप्तपरीक्षाके प्रारंभके श्लोकोंसे भी यही बात मालूम होती है:श्रेयोमार्गस्य संसिद्धिः प्रसादात्परमेष्ठिनः । इत्याहुस्तद्णस्तोत्रं शास्त्रादौ मुनिपुङ्गवाः ॥ मोक्षमार्गस्य नेतार...... ............... अर्थात् परमेष्ठीके प्रसादसे मोक्षमार्गकी प्राप्ति होती है, अतएव तत्त्वार्थशास्त्रके आदिमें मुनिपुङ्गव उमास्वामि · मोक्षमार्गस्य नेतारं ' आदि उनके गुणोंका स्तोत्र करते हैं । . । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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