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जैनहितैषी
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कम है ! १७ जातियाँ ऐसी हैं जो बराबर घट रही हैं और कुछ दिनोंमें समाप्त हो जायेंगी ! १९०१ में दिसवाल जातिकी जनसंख्या ९७१ थी, जो १९११ में घटकर सिर्फ ३२५ रह गई ! बरारमें एक ‘कुकेकरी' नामकी जाति थी जिसमें अब एक भी पुरुष या स्त्री जीवित नहीं है। यदि विवाहका क्षेत्र बढ़ जायगा तो इन छोटी जातियोंका क्षय होना बन्द हो जायगा-इनमें जो लोग कुंआरे ही मर जाते हैं वे न मरने पावेंगे । इस विषयमें यह शंका हो सकती है " यदि इन अल्पसंख्यक जातियोंके पुरुष दूसरी जातिकी कन्यायें ब्याह लेंगे, तो उन जातियोंमें कन्याओंकी कमी हो जायगी और कुँआरोंकी संख्या बढ़ जायगी ।" इसका समाधान यह है कि यद्यपि समूची जैन जातिमें स्त्रियोंकी संख्या पुरुषोंकी अपेक्षा कम है तो भी बहुत जातियाँ ऐसी हैं जिनमें विवाहयोग्य पुरुषोंकी अपेक्षा विवाहयोग्य कन्याओंकी संख्या अधिक है, अथवा अल्प संख्याके कारण गोत्रादि नहीं मिलते हैं इससे स्त्रिया भी कुँआरी रह जाती हैं और पुरुष भी कुँआरे रह जाते हैं । १९११ की मनुष्यगणनासे मालूम होता है कि जैनोंमें २५ वर्षसे अधिक अवस्थाकी २०३२ स्त्रियाँ कुँआरी हैं और १५ वर्षसे अधिक उम्रकी कुमारियोंकी संख्या तो छह हजारसे भी अधिक है ! कुछ समय पहले जैनमित्रमें एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें बतलाया था कि अग्रवाल जातिमें ऐसी सैकड़ों जवान और प्रौढ स्त्रियाँ हैं जिनको विवाहका सुख नसीब नहीं हुआ । सो यदि सब जातियोंमें बेटीव्यवहार होने लगेगा, तो इस प्रकारकी कुमारियोंकी संख्या बिलकुल न रहेगी।
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