________________
६३८
जैनहितषी
एक तो बेजोड़ विवाहोंकी, परस्पर प्रेम न रखनेवाले जोड़ोंकी, और बाल्यविवाहों की सन्तान यों ही अच्छी नहीं होती और फिर अल्पसंख्यावाली जातियाँ लाचार होकर बहुत ही नजदीक सम्बन्धमें ब्याह करने लगती हैं। जो जाति जितनी ही छोटी है, उसमें ब्याह शादियाँ उतनी ही नज़दीककी होने लगती हैं - बहुत ही निकटका रक्तसम्बन्ध होने लगता है और यह उत्तम और दीर्घजीवी सन्तानके न होनेका अथवा सन्तान ही न होनेका प्रधान कारण है | शरीरशास्त्र विद्वानोंका मत है कि रक्तका सम्बन्ध जितनी ही दूरका होगा सन्तान उतनी ही अच्छी और बलिष्ठ - होगी । हमारे प्राचीन आचार्योंने भी इसी कारण निकट सम्बन्धोंका निषेध किया है। असवर्णविवाहकी पद्धतिका मूल भी यही मालूम होता है । ईसाईयों और मुसलमानों में काका - जात भाई बहनोंका ब्याह करदेने की पद्धति है। यूरोपके शरीरशास्त्रज्ञ विद्वान् इस प्रथाको बहुत ही हानिकारक बतलाते हैं और इसको रोकनेके लिए आन्दोलन कर रहे हैं। उन्होंने परीक्षायें करके सिद्ध कर दिया है कि निकट - सम्बन्धकी सन्तान बहुधा रुग्ण विकलाङ्क और बुद्धिहीन होती है यूरोपमें और इस देशमें ऐसे बहुतसे प्रतिष्ठित वंश हैं जो अपने ही जैसे कुछ इनेगिने वंशोंसे ही सम्बन्ध करते हैं। इसका फल यह हुआ है कि उनके सन्तान बहुत कम होती है और जो होती है वह अयोग्य होती है। ईराणकी, 'बाहाई' जातिके लोगोंमें निकट सम्बन्ध करनेकी पद्धति नहीं है, इस कारण उक्त जातिके लोग वहाँकी अन्य समकक्ष जातियोंकी अपेक्षा अधिक बुद्धिवान् और बलवान् होते हैं। हम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org