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जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा। ६४१ जैनोंकी राजभक्ति और देशसेवा ।
१-अजमेरके गवर्नर डूमराज । O ज ब मारवाडके महाराजा विजयसिंहने सन्
१७८७ ईस्वीमें अजमेरको पुनः मरहटोंसे
जीत लिया तो उन्होंने ड्रमराज सिंघीको जो Ramail ओसवाल जातिके जैन थे अजमेरका गवर्नर नियुक्त किया । मरहटोंने शीघ्र ही अपनी हानियोंकी पूर्ति कर ली
और चार सालके पश्चात् फिर मारवाड़ देशपर आक्रमण किया । मेड़ता और पाटनके दो भीषण युद्ध हुए जिनमें मारवाड़ी पददलित कर दिये गये। .
___इसी बीचमें मरहटोंके सरदार डी. बाइनने अजमेर पर हमला कर दिया और उसको चारों ओरसे घेर लिया । अजमेरके गवर्नर डूमराजने अपनी छोटीसी सेनासे शत्रुका बड़ी वीरतासे सामना किया और उनको आगे बढ़नेसे रोक दिया।
पाटनयुद्धके बुरे परिणामके कारण विजयसिंहने डूमराजको हुक्म दिया कि मरहटोंको अजमेर सौंपकर जोधपुर चले आओ । उस साहसी बीरके लिए यह उत्तम कसौटी थी, क्योंकि न तो वह अपमानके साथ शत्रुको देश देना चाहता था और न वह अपने स्वामीकी आज्ञाका ही उलंघन करना चाहता था। इस भयंकर समयमें वह द्विविधामें पड़ गया । अन्तमें उसने निश्चय
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