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जैनजातियों में पारस्परिक विवाह ।
कुछ लोगोंका यह खयाल है कि सब जातियोंमें बेटीव्यवहार होने लगनेसे कन्याविक्रय बढ़ जायगा । ऐसे लोग अपने विचारकी पुष्टिमें यह युक्ति देते हैं कि जो लोग अपनी लड़कियोंको बेचते हैं, उनके लिए बिक्रीका क्षेत्र बढ जायगा और इस कारण वे जिस जातिमें अधिक धन देनेवाले मिलेंगे उसी जातिमें अपना काम बनानेकी कोशीश करेंगे; परन्तु यह युक्ति इस प्रश्नके एक ही ओर दृष्टि डालकर की जाती है—यह नहीं सोचा जाता कि जब बेचनेवालेके लिए विक्रीका क्षेत्र बढ़ जाता है तब खरीददारोंके लिए भी तो खरीद करनेका क्षेत्र छोटा नहीं रहता है। जो रुपये देकर ब्याह करना चाहेंगे, उनके लिए फिर लड़कियाँ भी तो बहुत मिलने लगेंगी-वे बेचनेवालोंके बढ़ते हुए लोभमें सहायक क्यों होंगे ? - ३ बाल्यविवाह-विवाहका क्षेत्रका संकुचित होनेसे लोगोंको अपने लड़के-लड़कियोंके ब्याहकी चिन्ता बहुत अधिक हो गई है और इस कारण वे जब योग-जोग जुड़ता है तब ही विवाह कर डालते हैं---उम्र आदिकी ओर देखते भी नहीं। यदि वे उम्रका विचार करते रहें तो उन्हें वर कन्याओंका मिलना ही कठिन हो जाय । अल्पजनसंख्यावाली जातियोंमें बाल्यविवाहका जोर औरोंकी अपेक्षा इसी कारण अधिक देखा जाता है । विवाहका क्षेत्र विस्तृत होनेसे बाल्यविवाह अवश्य ही बहुत कम हो जायगा । यहाँ यह करनेकी जरूरत नहीं मालूम होती कि बाल्यविवाहके कारण हमारे समाजको शारीरिक-मानसिक निर्बलता, गार्हस्थ्य सुखकी हानि
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