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जैनहितैषी
और मसाले यहाँ खानेको नहीं नहीं दिये जाते; किंतु दूध, मीठा दही, फल तरकारी तथा हरी चीजें जितनी मिल सकती हैं दी जाती हैं। दूध दहीके लिए गोशाला है जिसमें दूध देनेवाली गायोंकी बड़ी संख्या है। हरी तरकारीके लिए खेत और बाड़े है जिनमें ऋतुओंकी तमाम चीजें पैदा होती हैं। . __ भोजन करनेके पश्चात् आश्रमको देखा। इस समय इसमें ३१५ ब्रह्मचारी हैं । स्कूल और कालिन दो पृथक् पृथक् विभाग हैं। दोनोंके रहन सहन, खान पान, पठन पाठनका पृथक् पृथकू प्रबंध है । स्कूलमें पढ़नेवाले ब्रह्मचारियोंसे १० ) मासिक और कालिजमें पढनेवाले ब्रह्मचारियोंसे १५) मासिक फीस ली जाती है । ज्वालापुरमें फीस बिलकुल नहीं ली जाती और यहाँ पूरी ली जाती है। वहाँ प्रायः साधारण स्थितिके लोगोंके बालक रहते हैं, यहाँ श्रीमामानोंके रहते हैं।
छोटी कक्षासे लेकर ऊँचीकक्षा तक यहाँ पर सब पढाई मातृभाषा हिंदीमें होती है । यहाँका पुस्तकालय बड़ा विशाल है। उसमें प्रत्येक विषयके अच्छे अच्छे ग्रंथोंका संग्रह है। पत्र और पत्रिकायें भी कितनी ही आती हैं।
यहाँका अखाड़ा-व्यायामशाला भी दर्शनीय है। उसमें व्यायामकी कितनी ही उपयोगी चीजें हैं। ... जल वायु यहाँका बड़ा स्वच्छ है । गुरूकुलके पाले गंगा बहती है । यहाँका दृश्य बड़ा ही मनोहारी है। वर्षाऋतुमें यहाँ अवर्णनीय आनंद रहता होगा।
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