________________
जैनहितैषी
६१४
सट्टा।
(व्येंकटेश्वरसे उद्धृत) O स ट्रेका ‘लक्षण' अनिश्चित है । साधारण भाषामें
र सट्टेका अर्थ · बदला' होता है। एक चीनके बदले दूसरी चीजका लेना देना — सट्टा' या
सौदा' कहलाता है, परन्तु इस अर्थके सिवाय सट्टेका और सच्चे व्योपारका शब्दों में भेद करना बहुत ही कठिन है। प्रत्येक व्योपारमें सट्टेका अंश उपस्थित रहता है एवं बड़े बड़े सट्टे वास्तवमें व्योपार कहलाते हैं। जोखम' जैसी सट्टेमें रहती है, वैसी प्रत्येक व्यापारमें भी रहती है । दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ताकी दोनोंमें आवश्यकता है । मालकी आयत और निकास, उपज और खप दोनोंहीमें देखी जाती है और दोनोंहीमें लोग अपनी शक्तिके बाहर काम करने लगते हैं । अतः इनके भेदका वर्णन करना सरल नहीं है, किन्तु व्यवहारमें सट्टे और व्योपारका अन्तर स्पष्ट प्रतीत होता है और सर्व विदित है। __ रेल्वे, तार, मिल इत्यादि उद्यमोंके सञ्चालक कभी सटोरिये नहीं कहलायँगे, परन्तु रुई, अलसी, चाँदी, सन, पाट, शेर इत्यादिको अनापशनाप खरीदने वेचनेवाले एवं केवल लाभ हानिके फर्कका लेनदेन करनेका आभ्यन्तरिक सङ्केत रखनेवाले, तथा कानूनसे बचनेके लिये, इस मतलबसे, मालकी ' डिलीवरी । अर्थात् तैयारी लेनदेन करनेवाले, अतएव इसी मतलबसे, लिखित कबूलियतके बन्धनका
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org