Book Title: Jain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 48
________________ ६२० जैनहितैषी नगरीको लिखा है। मथुरामें जो जम्बुस्वामिका मेला होता है उसके विज्ञापनादिकोंमें भी ऐसा ही प्रगट किया जाता है। और सकलकीर्ति आचार्यके शिष्य जिनदास ब्रह्मचारीने अपने बनाये हुए जम्बुस्वामिचरित्रमें लिखा है कि श्रीजम्बुस्वामि महाराज 'विपुलाचल ' पर्वतसे मोक्ष गये हैं । अतः विद्वानोंको इस बातका निश्चय करना चाहिए कि वास्तवमें जम्बुस्वामिका समाधिस्थान कहाँपर है। (२१) 'शतक' ग्रन्थ । बहुतसे ग्रंथ 'शतक' नामसे प्रसिद्ध हैं । जैसे नीतिशतक, वैराग्यशतक, जैनशतक, जिनशतक और समाधिशतकादि । ग्रंथोंके सम्बंधमें ' शतक ' शब्दका अर्थ · सौपद्योंका समूह ' ( A collection of one hundred stanzas ) होता है । अर्थात् जिस ग्रंथमें एक शत ( सौ ) पद्योंका समूह हो उसे 'शतक' कहते हैं । नीतिशतकका अर्थ है, नीतिविषयक सौ पद्योंका समूह । इसी प्रकारसे वैराग्यशतकादिकका अर्थ भी जानना । शतक शब्दके इस अर्थसे उपर्युक्त नीतिशतकादि प्रत्येक ग्रंथमें केवल सौ सौ पद्य होने चाहिएँ । परन्तु ग्रंथोंके देखनेसे मालूम होता है कि भर्तृहरिकृत नीतिशतकमें ११०, वैराग्यशतकमें ११६, भूधरदासकृत जैनशतकमें १०७, स्वामि समन्तभद्राचार्यविरचित जिनशतकमें ११६ और श्रीपूज्यपादाचार्यके समाधिशतकमें १०५ पद्योंका समूह है । यह क्यों ? इसका यथार्थ उत्तर अभीतक हमारी समझमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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