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जैनासैद्धान्तभास्कर |
गोलाके आधारसे लिखा गया है और इसी कारण इसमें अत्युक्तियों और अति प्रशंसाओंका अभाव न होनेपर भी ऊँटपटाँग बातें बहुत कम हैं । इसमें एक जगह लिखा है कि महाराज अशोकने श्रवणबेलगुल ग्रामके नाममें सरोवर शब्द जोड़ दिया । पर यह न मालूम हुआ कि इसके लिए कुछ प्रमाण भी है या नहीं । चन्द्रगुप्तबस्ती नामक मन्दिरके विषयमें भी लिखा है कि उसे सम्राट् अशोकने बनवाया था । इससे मालूम होता है कि सम्पादक महाशय अशोकको भी जैन समझते हैं ! पहले अंकके चन्द्रगुप्तवाले लेखमें उन्होंने एक जगह लिखा भी है कि अशोक अपने राज्याभिषेकके १३ वें वर्ष तक जैन था - पीछे बौद्ध हो गया था । परन्तु यह निरी गप्प है और साम्प्रदायिक मोहवश लिखी गई है। बौद्धधर्म धारण करनेके पहले वह वेदानुयायी था - कमसे कम यह तो निश्चित है कि जैन नहीं था । अपने गिरनारके पहले शिलालेखमें वह स्पष्ट शब्दों में लिखता है कि- “ पहले मेरी पाकशाला में प्रतिदिन हजारों जीव मारे जाते थे; परन्तु अब ( बौद्धधर्म धारण करने पर) भोजनके लिए केवल तीन ही प्राणी मारे जाते हैं और आगे ये भी न मारे जायँगे । " इससे स्पष्ट है कि वह पहले मांसभक्षी अजैन था । इस विषय में और भी अनेक प्रमाण दिये जा सकते हैं । सम्पादक महाशयके पास जैन होनेके कोई प्रमाण हों तो उन्हें प्रकट करना चाहिए । कमसे कम किसी जैनग्रन्थका ही प्रमाण देना चाहिए जिसमें लिखा हो कि अशोक जैन था ।
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बाहुबलिस्वामीकी प्रतिमापर एक तरफ लिखा है कि चामुण्डरायने बनवाई और दूसरी ओर लिखा है कि गंगराजने चैत्यालय
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