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जनहितैषी -
कि भगवज्जिनसेन और कविवर कालिदास ये दोनों समसामयिक कवि अपने काव्यमें सर्वोत्कष्टता दिखलाने के लिए कितना प्रयास करते थे ? केवल प्रयास ही तक नहीं बल्कि सफलता भी प्राप्त करते थे, जिसकी साक्षिता उपर्युक्त पद्य ही दे रहे हैं। " बाह द्विवेदीजी । इस जगह तो आपने सेठजीको खूब ही बनाया। हम लोगोंकी छोटीसी समझमें तो यह बात नहीं आई कि जो श्लोक बिलकुल मिलतेजुलते हुए हैं वे अपने अपने काव्यमें सर्वोत्कृष्टता दिखलाने के लिये बने हुए कैसे कहे जासकते हैं? उनके विषयमें ऐसा क्यों न कहा जाय कि एकने दूसरेकी छाया ली है? यदि आप कालिदास और जिनसेनको समसामयिक कहते हैं और सेठजीका ही मन रखना चाहते हैं तो यही क्यों नहीं कहते कि कालिदासने जिनसे - के श्लोकों की छाया ली है ? पर ऐसा आप क्यों लिखने लगे ? आप तो बेचारे सेठजीको बना रहे हैं !
अन्तमें आदिपुराणका एक श्लोक दिया है जिसमें ' अमोघशासन' शब्द आया है । इस श्लोक में राजा वज्रजंत्रके राज्यशासनकी प्रशंसा की गई है। इसके केवल ' अमोघ ' शब्दसे यह अर्थ निकालना कि कविने अमोघवर्ष महाराजका स्मरण किया है, जबर्दस्तीके सिवाय कुछ नहीं है |
(क्रमशः )
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