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जैनहितैषीmmmmmmmm
rwmmmmmmmmmmmmmmm " अभी तुझे बहुत कुछ प्राप्त करना है। तू कुछ भी नहीं है। तेरी प्रगति अभी प्राथमिक स्थिति की है।" घोड़े पर जिस प्रकार चाबुककी मार पड़ती है उसी प्रकार मुझपर भी इस अन्तरस्वरके चाबुककी मार पड़ती रहती है। इन सबमें यदि मैं कुछ नयापन देखता हूँ तो वह यह है कि जब मैं रोता हूँ तब हँसता भी हूँ। ज्योंही मेरा रोना बढ़ता है त्योंही हँसना भीबढ़त है। जो दवा तन्दुरुस्ती दे सकती है उसे ऐसा कौन अभागा होगा जो न पिये ? मैं तो यही चाहता हूँ कि मेरे पापोंका भान बढ़ता ही रहे । पापके भानमेंसे उत्पन्न होनेवाले पश्चात्ताप और कष्टादिको मैं सदा चाहता हूँ। परमात्माकी सत्ता ऐसी प्रेममय है कि कष्टोंमें भी वह आनन्द देती है । अपराधका जो भान कष्ट देता है वह आनन्द भी देता है। पापोंका पश्चात्ताप आत्माको परमात्माके साथ मिलाता है। परमात्माकी सत्ताको समझनेके बाद और उस सत्ताके साथ सम्मुखताका अनुभव किये बाद प्रायः कष्ट और सन्ताप कुछ गिनतीमें नहीं रहते। जिसने उस सत्ताको अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया उसे फिर किस बातकी चिन्ता ? इस सत्ताके साथमें बेचारे पापोंकी सत्ता किस खेतकी मूली है ? .. मित्रो, मैंने तुम्हें जीवनकी अँधेरी और उजेली इन दोनों दिशा
ओंका ज्ञान कराया । जो तुमने कोई पाप किया हो तो अपने आत्माको असुखी होने दो । शान्तिस्वरूप परमात्मा तुम्हारे पास आकर तुम्हारे हृदयको अपनी स्वरूपभूत शान्तिसे खूब भर देगा। .
- उदयलाल काशलीवाल ।
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