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जैनहितैषी
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अनुवादक महाशय इसका अर्थ करते हैं-"अजितनाथका. अवतार, पूर्णाम्बुदकी लडकीका सौख्य, विद्याधरकुमारकी शरण ।" यदि थोडीसी तकलीफ उठाकर भाषा पद्मपुराण ही बाँच लिया होता तो बेचारा पूर्णमेघका लड़का लड़की होनेसे तो बच जाता !
तडित्केशस्य चरितमुदधेरमरस्य च । किष्किन्धान्ध्रखगोत्पादं श्रीमालाखेचरागमम् ॥ ५६ ॥ वधाद्विजयसिंहस्य कोपं चाशनिवेगजम् । इसका वास्तविक अर्थ यह है-" विद्युत्केश विद्याधरका चरित; उसकी रानी श्रीचन्द्राके कुचोंको उद्यानक्रीड़ाके समय एक बन्दरने नोच लिया इस कारण विद्युत्केशका उसे बाणसे मार डालना और उसका उदधिकुमार जातिका देव होना, इस तरह उदधिदेवका चरित; किष्किन्ध और अन्ध्रक विद्याधरोंकी उत्पत्ति, आदित्यपुरके राजकी कन्या श्रीमालाके स्वयम्बरके लिए विद्याधर राजाओंका आगमन, श्रीमालाका किष्किन्धको ब्याह लेनेके कारण विद्याधरोंमें युद्ध, उसमें विजयसिंहका मारा जाना और इस कारण उसके पिता अशनिवेगका क्रोधित होना ।” परन्तु अनुवादक महाशय यह अर्थ करते हैं-" समुद्र-देवता तथा तडितकेशका चरित्र, विजयसिंहके मारनेसे वज्रसदृश वेगवाले क्रोधका वर्णन।" देखिए, कितने संक्षेपमें कर दिया ! द्विवेदीजीने समझा होगा कि जैनोंके यहाँ भी समुद्रको देवता माना होगा, इस लिए उसका चरित पद्मपुराणमें अवश्य लिखा होगा ! ५६ वें श्लोककी दूसरी तुकका अर्थ लिखनेकी तो आपने आवश्यकता ही न समझी । तसिरी तुकरें
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