Book Title: Jain Dharma Sar
Author(s): Sarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi
Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan

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Page 12
________________ २४ षट्खण्डागम । १.१ क्रम विषय गाथांक क्रम विषय गाथांक २. पुद्गल कर्तृत्ववाद ५. समन्वयवाद (नय योजना (आरम्भवाद) ३४९ विधि) ३. कर्म कारणवाद ३५२ १७. स्याद्वाब अधिकार १५. अनेकान्न अधिकार (सर्वधर्म समभाव) (द्वैताद्वैत) १. सर्वधर्म समभाव १. द्रव्य का स्वरूप २. स्याहाद-न्याय ४०२ २. विरोध में अविरोध ३. स्याद्वाद योजना-विधि ४०७ ३. वस्तु की जटिलता १८. आम्नाय अधिकार ४. अनेकान्त निर्देश ३७२ ५. अनेकान्त की सार्वभौमिकता३७४ १. जैनधर्म की शाश्वतता ४०८ ६. सापेक्षतावाद २. देश-कालानुसार जैन धर्म में परिवर्तन १६. एकान्त व नय अधिकार ४१२ ३. दिगम्बर सूत्र ४१६ (पक्षपात निरसन) ४. श्वेताम्बर सूत्र ४१९ १. नयवाद ३७१ २. पक्षपात निरसन ३८२ परिशिष्ट ३. नयवाद की सार्वभौमिकता ३८८ १. गाथानुक्रमणिका पृ०१८५ ४. नय की हेयोपादेयता ३९२ २. सैद्धान्तिक शब्द-कोश पृ० १९२ ३७६ १. मंगल-सूत्र १. णमो अरहताणं । णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्वसाहूणं। आवश्यक सूत्र । १.२ नमः अहंदुभ्यः। नमः सिद्धेभ्यः । नमः आचार्येभ्यः। नमः उपाध्यायेभ्यः । नमः लोके सर्वसाधुभ्यः। अर्हन्तों को नमस्कार। सिद्धों को नमस्कार। आचार्यों को नमस्कार। उपाध्यायों को नमस्कार। लोक में सर्वसाधुओं को नमस्कार। ( चत्तारि मंगलं) २. अरहंता मंगलं। सिद्धा मंगलं । साहू मंगलं । केवलीपण्णतो धम्मो मंगलं । (चत्तारि लोगुत्तमा) अरहता लोगुत्तमा। सिद्धा लोगुत्तमा। Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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