Book Title: Jain Dharma Sar Author(s): Sarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi Publisher: Sarva Seva Sangh PrakashanPage 85
________________ सरवाधिकार १३ १४६ परमात्म तत्व बांस का वृक्ष अपने को अपने से रगड़ कर स्वयं अग्नि रूप हो जाता है। (मोक्ष प्राप्त वह सिद्धात्मा कार्य परमात्मा है) ३४५. ज्ञानं केवल संज्ञ, योगनिरोधः समग्रकर्महतिः । सिद्धिनिवासश्च यदा, परमात्मा स्यात्तदा व्यक्तः ।। अध्या० सा० । २०.२४ तु० = दे० गा० ३४४ ___ उस जीवात्मा को जब केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है, योगनिरोध के द्वारा समस्त कर्म नष्ट हो जाते हैं और वह जब लोक-शिखर पर सिद्धालय में जा बसता है, तब उसमें ही वह कारण-परमात्मा व्यक्त हो जाता है। :१४: सृष्टि-व्यवस्था सृष्टि-व्यवस्था के विचार में वेदान्तादि अद्वैत दर्शनों को छोड़ कर प्रायः सभी भारतीय दर्शन स्वभाववादी होने के कारण ईश्वर की पारमार्थिक सत्ता स्वीकार नहीं करते। जैनदर्शन इस विषय में स्वभाववादी व कर्मवादी है। ___कार्य-कारण व्यवस्था में इसका स्वभाववाद'सत्कार्यवाद व आरम्भवाद दोनों को स्वीकार करता है। साथ ही इसकी समन्वय-दृष्टि काल, आत्मा, ईश्वर, पुरुषार्थ आदि अन्य अंगों का भी सर्वथा लोप नहीं कर सकती। Jain Education intematonal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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