Book Title: Jain Dharma Sar
Author(s): Sarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi
Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan

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Page 96
________________ नय अधिकार १६ १६८ नय-योजना - विधि परन्तु तत्त्वान्वेषण के काल में ही मुक्ति मार्ग से तत्त्व को जानना योग्य है, आराधना के काल में नहीं, क्योंकि उस समय तो वह स्वयं प्रत्यक्ष ही होता है । ५. नय-योजना - विधि ३९५. तित्थय रवयण संगह, विसेसपत्थारमूलवागरणी । दव्वट्ठिओ य पज्जवणओ, य सेसा वियप्पा सिं ॥ तु० = न० च० । १४८ तीर्थंकरवचन संग्रह विशेष प्रस्तारमूलव्याकरणी । द्रव्यार्थिकश्च पर्ययनयश्च, शेषाः विकल्पाः एतेषाम् ॥ तीर्थंकरों के वचन प्रायः दो प्रकार के होते हैं-- सामान्यांश प्रतिपादक और विशेषांश प्रतिपादक । इसलिए उनके ग्राहक नय भी दो प्रकार के हैं -- द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । शेष सर्व नय इन दोनों के ही भेद-प्रभेद हैं। सन्मति तर्क । १.३ ३९६. पज्जउ गउणं किज्जा, दव्वं पि य जो हु गिहणए लोए । सो दव्वत्थिय भणिओ, विवरीओ पज्जयत्थिओ ॥ तु० = वि० आ० भा० । २६४४-२६४६ न० च० । १९० पर्यायं गौणं कृत्वा द्रव्यमपि च यो गृह्णाति लोके । स द्रव्यार्थिकः भणितः, विपरीतः पर्यायार्थिकः ॥ पर्याय को गौण करके जो द्रव्य को मुख्यतः ग्रहण करता है, वह द्रव्यार्थिक नय है। उससे विपरीत पर्यायार्थिक नय है । अर्थात् द्रव्य को गौण करके जो पर्याय का मुख्यतः ग्रहण है, वह पर्यायार्थिक नय है। ३९७. दव्वट्ठियवत्तन्वं अवत्थु, णियमेण पज्जवणयस्स ॥ तह पज्जववत्थु अवत्थमेव दव्वट्ठियणयस्स || सन्मति तर्क । १.१० Jain Education International द्रव्याथिक वक्तव्यमवस्तु, तथा पर्ययवस्तु अवस्तु तु० = रा० वा० । १. ३३.१ नियमेन पर्ययनयस्य । एव द्रव्याथिकनयस्य ॥ नय अधिकार १६ १६९ नय-योजना-विधि द्रव्याथिक का वक्तव्य पर्यायार्थिक की दृष्टि में अवस्तु है और इसी प्रकार पर्यायार्थिक का वक्तव्य द्रव्यार्थिक की दृष्टि में अवस्तु' है । ३९८. उप्पज्जंति वियंति य, भावा नियमेण पज्जवणयस्स । दव्वट्ठियस्स सव्वं, सया अणुप्पन्नमविणठं ॥ सन्मति तर्क । १.११ तु० = पं० का० त० प्र० । ५४ नियमेन पर्ययनयस्य । सदानुत्पन्नमविनष्टम् ॥ उत्पद्यन्ते व्ययन्ति च भावा द्रव्याथिकस्य सर्वं, पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा सभी पदार्थ नियम से उत्पन्न होते हैं और विनष्ट होते हैं। द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा सभी वस्तुएँ सर्वदा के लिए न उत्पन्न होती हैं, न नष्ट । For Private & Personal Use Only १. विशेषांश को देखते समय सामान्य और सामान्यांश को देखते समय विशेषांश दिखाई ही नहीं देते। इसलिए उस समय उसके लिए वे भवस्तु है । www.jainelibrary.org

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