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आम्नाय अधि०१८
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दिगम्बर-सूत्र है, इसलिए उन्हें धर्म समझाना कठिन पड़ता है। चरम तीर्थ में प्रकृति वक्र हो जाने के कारण धर्म को समझ कर भी उसका पालन कठिन होता है। मध्यवर्ती तीर्थों में समझना व पालना दोनों सरल होते हैं। ४१४. चाउज्जामो य जोधम्मो, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ - बद्धमाणेणं, पासेण य महामुणी ॥
उत्तरा०। २३.२३ चातुर्यामश्च यो धर्मः, योऽयं पंचशिक्षितः।
देशितो बर्द्धमानेन, पार्वेन च महामुनिना ॥ यही कारण है कि भगवान् पार्श्व के आम्नाय में जो चातुर्याम मार्ग प्रचलित था, उसी को भगवान् महावीर ने पंचशिक्षा रूप कर दिया। ४१५. बावीसं तित्थयरा, सामाइयसंजमं उवदिसंति । छेदुवट्ठावणियं पुण, भयवं उसहो महावीरो॥
मू० आ० । ५३३ (७.४२) द्वाविंशतितीर्थकराः, सामायिकसंयम उपदिशति ।
छेदोपस्थापनं पुनः, भगवान् ऋषभश्च वीरश्च ॥ दिगम्बर आम्नाय के अनुसार मध्यवर्ती २२ तीर्थंकरों ने सामायिक संयम का उपदेश दिया है। परन्तु प्रथम व अन्तिम तीर्थकर ऋषभ व महावीर ने छेदोपस्थापना संयम पर जोर दिया है। ३. दिगम्बर-सूत्र ४१६. ण वि सिज्झइ वत्थधरो,
__ जिणसासणे जइ वि होइ तित्थयरो। णग्गो विमोक्खमग्गो, सेसा उम्मगया सव्वे ।।
सू०पा०।२३ नापि सिध्यति वस्त्रघरो, जिनशासने यद्यपि भवति तीर्थकरः। नग्नो विमोक्षमार्गः, शेषा उन्मार्गकाः सर्वे॥
भले ही तीर्थकर क्यों न हो, वस्त्रधारी मुक्त नहीं हो सकता। एकमात्र नग्न या अचेल लिंग ही मोक्षमार्ग है, अन्य सर्व लिंग उन्मार्ग हैं।
अम्नाय अधि० १८ १८१
श्वेताम्बर सूत्र ४१७. धम्मम्मि निप्पवासो, दोसावासो य उच्छुफुल्लसमो। निप्फलनिग्गुणयारो, नडसवणो नग्गरूवेण ॥
भा०पा०।७१ धर्मे निप्रवासो, दोषावासश्च इक्षुपुष्पसमः। निष्फलनिर्गुणकारो, नटश्रमणो नग्नरूपेण ॥ (इसका यह अर्थ नहीं कि नग्न हो जाना मात्र मोक्षमार्ग है, क्योंकि) जिसका चित्त धर्म में नहीं बसता, जिसमें दोषों का आवास है, तथा जो ईख के फूल के समान निष्फल व निर्गुण है, वह व्यक्ति तो नग्नवेश में नट-श्रमण मात्र है। ४१८. णिच्छयदो इथीत्णं सिद्धी, ण हि तेण जम्मणा दिट्ठा । तम्हा तप्पडिरूवं, वियप्पियं लिंगमित्थी णं ।।
प्र० सा०।२२५ को प्रक्षेपक गा०७ निश्चयतः स्त्रीणां सिद्धिन, तेनैव जन्मना दृष्टा।
तस्मात् तत्प्रतिरूपं, विकल्पिकं लिगं स्त्रीणां ।। निश्चय से स्त्रियों को इसी जन्म से सिद्धि होती नहीं देखी गयी है, क्योंकि सावरण होने के कारण, उन्हें निर्ग्रन्थ का अचेल लिंग सम्भव नहीं। ४. श्वेताम्बर सूत्र ४१९. अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। देसिओ बद्धमाणेणं, पासेण य महाजसा ।।
उतरा०। २३.२९
अचेलस्य यो धर्मः, योऽयं सान्तरोत्तरः।
देशितो दर्द्धमानेन, पार्वेण च महायशसा ॥ हे गौतम! यद्यपि भगवान् महावीर ने तो अचेलक धर्म का ही उपदेश दिया है, परन्तु उनके पूर्ववर्ती भगवान् पार्श्व का मार्ग सचेल भी है।
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