Book Title: Jain Dharma Sar
Author(s): Sarva Seva Sangh Prakashan Rajghat Varanasi
Publisher: Sarva Seva Sangh Prakashan

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Page 10
________________ विषयानुक्रम प्रथम खण्ड (धर्म) विषय गाथांक क्रम विषय गार्थाक १. मिथ्यात्व अधिकार ४. सम्यग्दर्शन अधिकार (अविद्या योग) (जागृति योग) १. मंगल सूत्र १ १. सम्यग्दर्शन (तत्त्वार्थ दर्शन) ४३ २. मंगल प्रतिज्ञा २. सम्यग्दर्शनकी सर्वोपरिप्रधानता४५ ३. एक गम्भीर पहेली ५ ३. श्रद्धा सूत्र ४८ ४. यह कैसी भ्रान्ति ४. सम्यग्दर्शनके लिंग (ज्ञानयोग)५० ५. एक महान् आश्चर्य १० ५. निःशंकित्त्व (अभयत्व) ५२ ६. दुःख हेतु-कर्म ११ ६. निःकाक्षित्त्व (निष्कामता) ५४ ७. अपना शत्रु मित्र स्वयं १२ ७. निविचिकित्सत्त्व ८. दैत्यराज मिथ्यात्व (अविद्या) १४ (अस्पृश्यता निवारण) ५८ ९. लेने गये फूल, हाथ लग शूल १८ ८. अमूदष्टित्त्व (स्वधर्म-निष्ठा) ६० २. रत्नत्रय अधिकार ९. उपगृहनत्व (अनहकारत्त्व) ६१ १०. उपवृंहणत्व (अदंभित्व) ६४ (विवेक योग) ११. स्थितिकरणत्व १. सम्यक् योग--रत्नत्रय १९ (ज्ञानयोगव्यवस्थिति) ६९ २. अभेद रत्नत्रय-आत्मा २१ १२. वात्सल्यत्व (प्रेमयोग) ३. भेद रत्नत्रय २२ १३. प्रशम भाव ३. समन्वय अधिकार १४. आस्तिक्य माव १५. प्रभावना करणत्व (समन्वय योग) १६. भाव संशुद्धि १. निश्चय व्यवहार ज्ञान समन्वय २७ २. निश्चय व्यवहार चारित्र ५. सम्यग्ज्ञान अधिकार समन्वय ३१ (सांख्य योग) ३. ज्ञान कर्म समन्वय ३७ १. सम्यग्ज्ञान सूत्र (अध्यात्म४. परम्परा मुक्ति ४० विवेक) ७९ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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