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* अन्तराशीष
जीवन में साहित्य का बहुत महत्त्व है। मधुरकंठी प्रियवंदनाश्री ने 'जैन दर्शन में समत्वयोग' पर विशेष दार्शनिक अध्ययन एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसका महत्त्व के नाम शोध प्रबन्ध लिखा है । प्रियवंदनाश्री की मानव कल्याणकारी चरम लक्ष्य तक पहुँचने वाले समत्वयोग विषय पर यह कृति प्रकाशन की जा रही है। ग्रन्थ को बोधगम्य एवं सर्वाङ्गपूर्ण बनाने में डॉ. सागरमलजी जैन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। डॉ. ज्ञानचन्दजी जैन ने कुशल सम्पादन करने का प्रयास किया है।
आशा है यह कृति सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी तथा जीवन को समुन्नत एवं परिष्कृत करने में सहयोगी बनेगी। अपने जीवन को कमल समान सुरभित बनावें । मैत्री, करूणा तथा सम्यग्दर्शन से आत्मा को दीप्तिमान बनावें, आधि, व्याधि और उपाधि के क्षणों में आत्मा समभाव में विराम पाये एवं वे क्षण अवश्य ही कर्म निर्जरा व शुभ बंध अंत में मोक्ष के बीज बनें यही अभिलाषा है।
परमात्म
प्रतिदिन स्वयं और दूसरों को स्वाध्याय में जोड़े, वाणी का अनुसरण करें, समत्वयोग प्राप्त कर अल्पकाल में मोक्षाधिकारी बनें अन्तरकामना के साथ शुभाषीष है।
साध्वी सुलोचना श्री
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