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तेरा... तुझको... अर्पण
समर्पण...
जिनकी पावन सन्निधि में, अन्तरंग कलि विकसित हुई, उत्साहों से भरी पिचकारी, गुरुवर ! आपसे मुझे मिली,
र र ऊर्जा किरण से ज्ञान की ज्योति है प्रगटी शाजापुर में लेखनी की, श्रुतधारा प्रवाहित हुई, डॉ. सागरमलजी के निर्देशन में, कलम कागज पर चली, गुरुवर्या श्री के शुभ आशीष की, बरखा जीवन में बरसी, ग्रंथ पूर्णाहुति मंगल क्षणों में, अन्तर की कलियाँ महकीं,
उत्कृष्ट भावाञ्जलि सह, नतमस्तक चरणों में धरति, इस 'समत्वयोग' ग्रंथ को, तुम कर कमलों में समर्पित करती समर्पण... समर्पण... समर्पण...!!
आस्था के आयाम, परम श्रद्धेया, मातृहृदया परम पूजनीया गुरुवर्या श्री सुलोचनाश्रीजी म.सा. परम पूजनीया श्री सुलक्षणाश्रीजी म.सा. के पवित्र... पाद्... पद्मों में सादर समर्पित...!!!
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'सुलोचन' शिशु साध्वी प्रियवंदना श्री
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