Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 14
________________ परिच्छेद चार 334-350 - मांग व पूर्ति में सन्तुलन : आधुनिक अर्थव्यवस्था - पूंजीवाद - समाजवाद और साम्यवाद - मूल में भूल - पर्यावरण की क्षति - भ.महावीर और महात्मा गांधी - अणुव्रत और गांधीजी - सर्वोदय - कल्याणकारी अर्थशास्त्र - बाजारवाद - नारी का चीर हरण - बाजार के आधार - भूमण्डलीकरण - भय और हिंसा का अर्थ-तन्त्र - परमाणु आयुधों का जाखीरा : तुलनात्मक अध्ययन - साधन-साध्य की शुचिता - शिक्षा और स्वास्थ्य - दवा उद्योग का निदर्शन - निष्पत्ति / परिच्छेद पाँच 351-359 उपसंहार 360-376 - आगम साहित्य का महत्व - जैन परम्परा में अर्थ सम्बन्धी अवधारणाएँ - अर्जन और विसर्जन में विवेक -- अर्थोपार्जन के साधन - श्रम और पूंजी - मुद्रा और राजस्व - प्राथमिक उद्योग - द्वितीयक उद्योग - व्यापार और व्यापार-केन्द्र - अणुव्रत और समता (xiii)

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