Book Title: Jain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Author(s): Dilip Dhing
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 13
________________ परिच्छेद दो 307-315 - संयमित जीवन - स्वावलम्बन की शिक्षा - आजीविका पर चोट नहीं - नारी उद्धार - समता का साम्राज्य - जनभाषा का प्रयोग : अपरिग्रह का अर्थशास्त्र - अर्थशास्त्र का मूल व्रत - जैन परम्परा की देन : अपरिग्रह - अस्तेय और अपरिग्रह - कर्मठता और अस्तेय - अप्रमाद और अस्तेय - अस्तेय और प्रामाणिकता - प्रामाणिकता के सुपरिणाम - परिग्रह के भेद-प्रभेद - परिग्रह के तीस नाम - अपरिग्रह और इच्छा-परिमाण - अपरिग्रह और विकास - अहिंसा से अपरिग्रह तक - व्यक्तित्व रूपान्तरण से व्यवस्था परिवर्तन : मध्ययुगीन अर्थव्यवस्था - मौर्य साम्राज्य पर प्रभाव - चाणक्य पर प्रभाव - विहंगावलोकन - वसुदेवहिण्डी में आर्थिक व्यवस्था - कुवलयमालाकहा में आर्थिक जीवन - खनन और स्फोट-कर्म - आगम और अगमोत्तर युग - सोमदेव सूरि का चिन्तन - निःशस्त्रीकरण का प्रथम सन्देश - हेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल - जैनों का अवदान - प्राकृत : रोजी-रोटी की भाषा परिच्छेद तीन 316-333

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