Book Title: Jagad Guru Hir Nibandh
Author(s): Bhavyanandvijay
Publisher: Hit Satka Gyan Mandir
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८
:: हीर गायनम्
ये हीराः ! ये धीराः ? सदाधन्या सदामान्याः । सदाऽहं प्रार्थये सन्तं भवन्तं तारकं हीरम् ॥ १ ॥
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अहिंसा धर्म धौरेया, स्तथा वै शासका यूयम् । कन् बधकाः सत्य, न्तदाजाता जगत्ख्याताः ॥ २ ॥ जगत्यां जैनजन्तूनां शिरोमूर्धन्य सूरीशाः । महाभव्या महासभ्या, बुधा जैनागमाभिज्ञाः ॥ ३ ॥
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अहो वैराग्य मापन्ना, महापुण्या, सदापूज्याः । पुनारम्यं तदाकारं, स्वकीयं दर्शयैश्वर्यम् ॥ ४ ॥
कियन्तो भेद भावज्ञाः, स्वदेश प्रबुद्धा नाशयन्तोऽह
"
भारतं पूतम् । निशंहन्तु जगद्धर्मम् ॥ ५ ॥
विना हीरं विना वीरं
जगत्त्रातु नचाशास्ते ।
तदर्थ "हिम्मतो" याचे पदाब्जं तारकं तेऽहम् ॥ ६ ॥
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समायातेऽधुनादेशे, पदाब्जे तावकं नूनम् । सुगास्यामो हि यास्यामो वयन्ते मंगलं गानम् ॥ ७ ॥
प्रशस्यं तादृशं रूपं सुधीः श्री कृष्णदेवोऽपि । मुमुक्षु लोकितु दक्षाः, सुभव्यानन्द रत्नादिः ॥ ८ ॥
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