Book Title: Indian Antiquary Vol 06 Author(s): Jas Burgess Publisher: Swati PublicationsPage 28
________________ 20 THE INDIAN ANTIQUARY. [JANUARY, 1877. (२) श्रियमlयन्त्याः कृतपरिग्रहः शौर्यप्रतिहतप्रतगदरपवसिप्रचण्डरिपुमण्डलमण्डलाग्रमिवालंबमानं शरदि प्रसभमाकृष्टशिलीमुखबाणासना [पादित] प्रसा(') धनावा पराभुवां विधिवदाचरितकरग्रहण: पूर्वमेव विविधवर्णोज्वलनश्रुतातिशिनोद्भासितश्रवणयु गल पुनः पुनरुक्तेनेव रत्नालंकारे: परिस्फुरत्करकसकटकीटपक्षतनुकिरणमविच्छिन्नप्रदानसलिलनिवहावसकविसल नवशैवलांकु मिवाप्रपाणमुद-] (3) हन्धृतविशालरत्नवलनाजलधिवेलातटायमानजपरिष्वतविश्ववरः परममाहेश्वरश्रीधवसेनः तस्यायजो परममहीपतिस्पर्धादोः ( १ ) पनाशनधियेव लक्ष्म्या स्वयमतिस्पष्टचेष्टमाश्लष्टाङ्गयष्टरतिरुचिरतरचरितगरिमपरिकलित सकलनरपतिरतिप्रकृष्टानुरागसरभ1) सवजीकृतप्रणतसमस्तसामन्तचक्रचूडामणिमयूखखदित चरणकमलयुगलः प्रोद्दामदारदोईण्डद लितद्विषर्गदर्पः प्रसपत्पटीयः प्रताप(१) प्लोषःताशेषशत्रुवंश प्रणयीपक्षनिक्षिप्तलक्ष्मीकः प्रेरितगदोक्षिप्तसुदर्शनचारः परिहृतबालेकीडोनद्धः कृतदिजातिरेकविक्रमप्रसाधितधरितीतलोन(') श्रीकृतजलशय्योपूर्वपुरुसोत्तमः साक्षाद्धर्म इव सम्यग्व्यवस्थापितवर्णाश्रमाचारः पूर्वप्युवीपतिभिः तृष्णालवलुब्धैर्यान्यपहृतानि देवब्रह्मदेयानि (") तेषामप्यतिसकलमनप्रसरमुत्सकलानानुमादनाभ्यां परिमुदिततृभुवनाभनन्दितोच्छ्रितोत्कृष्ट धबलधर्मध्वजप्रकाशितनिजवंशो देवद्विजगुरू(') प्रति यथार्ह मनवरतप्रवर्तितमः होदङ्गादिदान पसनानुपजातसतापोपात्तोदारकीर्ता . परादन्तुरि तनिखिलदिवालः स्पष्टमेव यथार्थ (५) धर्मादित्यद्वितीयनामा परममाहेश्वरः श्रीखरग्रहस्तस्याग्रजन्मनः कुमुदपण्डश्रीविकासिन्यां कलापोवतश्चन्द्रिकयेव का धवलितसकलदिऊँ) डलस्य खण्डितागुकविलेपनपिंडश्यामलविन्ध्यमालविपुलययोधरायाः क्षित: पत्युः श्रीशोलादित्यस्य सूनुर्नवप्रालयकिरण इव प्रतिदिनसं('') वर्धमानकलाचन्द्रवाल केसरीन्द्रशिशुरिव राजलक्ष्मीसकलवनस्थलीमिवालंकु णः शिखण्डिके तन इवद्विषतां परममाहेश्वर: परमभट्टा(1) रकमहाराजाधिराजपरमेश्वरश्रीबप्पपादानुध्यातपरमभट्टारकमहाराजाधिराजपरमेश्वर . श्राशालादित्यदेव : तस्य सुत : पारमेश्वर्य कोपा(") कृष्ठनिम्नशपातविदलितारातिकरिकुम्भस्थलोलसत्प्रसृतमहाप्रतापानलप्रपरिगतजगनंण्डललब्धस्थि ति विकटनिजदोर्दण्डावलंबिना सक. L.2, road "प्रतिहतब्यापारमानमिता'. L.s, ral निभुवना LIP.ra महादूग' सता काति; titiot on this धवाना तिशये'. L. , rend कटकविकट' पक्षात्न : plate indicates the omission of fournylables. L. 12, read the belonging to bheja in the lower line has got सिन्या कलाव, काग. L.13. rai की शैल° पयो". into the upper, when it appears that the engraver copert! 'प्रालय . L. 11, read चकवालः; राजलक्ष्मीनचलव', after froin a Ms. सेक'. L.a, rend वलयजलधि', भुजपस्विन'; 1973 a whole line has been omitti. L. 15, all other विश्वंभरः; स्पर्शदो . L.G, read पनाशन; मालिष्टांगयष्टि'. plates have a179747; after a two lires have been omitted L.7, roud वशीकृत स्थगितचाण प्रोदामोदार. L.s, rearl Road पारमधर्य:- L.16, nud निसादा प्राकारपरि जगन्मप्राषिता, प्रगयि बाल'; चकः, नध: L.b, d पुरुषो । ण्डल'. नमः इवसम्य" तृणल". L. 10, read सरतमनः। मादनाभ्यांPage Navigation
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