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अर्घ्य कारकाय निवेदन
- स्नेहमूर्ति नवकार ! तुम्हारी स्नेह-वल्लरी-सी करुणा ने मेरे सुप्त मन को जागृत किया है !
इसी करुणावश मेरे मन ने
चुने हुए पुष्प-गुच्छ सम लेखन-निधि को संचित कराया है !!
लेकिन यह अर्पण किसे करूँ ?
हे नवकार ! तुम्हारी करुणा से पाया है ! अतः तुम्हें ही अर्पण !! सादर समर्पण !!!
-पद्मसागर
दस
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